Krishna Ki Chetavani | रामधारी सिंह दिनकर | Rashmirathi

वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है

सूरज को नही डूबने दूंगा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
देखो मैने कंधे चौडे कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एडियाँ जमाकर
खडा होना मैने सीख लिया है

मापदण्ड बदलो – दुष्यन्त कुमार

मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,

समर शेष है – रामधारी सिंह दिनकर

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो
किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो?
किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

प्रकृति पर छोटी कविता- साथ जाएगा एक वृक्ष

अंतिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ
एक वृक्ष जाएगा
अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर
साथ जाएगा एक वृक्ष
अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझसे पहले

नर हो न निराश करो मन को | Maithili Sharan Gupt

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह

-हमारे कृषक, -शक्ति और क्षमा, -सुन्दरता और काल, -भारत, -कृष्ण की चेतावनी, -किसको नमन करूँ मैं भारत?, -कोयल

मैं घास हूँ – अवतार सिंह संधू पाश

बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर, बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर, सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर … मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा

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