सूर्य ढलता ही नहीं है – रामदरश मिश्र | Suraj Par Kavita चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं हैदोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है! आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों सेबंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों सेहैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तरचिड़चिड़ाकर कह रहे- […]
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार – शिवमंगल सिंह सुमन
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
हरिओम पवार की वीर रस की कविता
बहुत दिनों के बाद छिड़ी है
वीणा की झंकार अभय
बहुत दिनों के बाद समय ने
गाया मेघ मल्हार अभय
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए – दुष्यन्त कुमार
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
तू भी है राणा का वंशज | Tu bhi hai rana ka vanshaj | वाहिद अली वाहिद
कब तक बोझ संभाला जाए
द्वंद्व कहां तक पाला जाए
दूध छीन बच्चों के मुख से
क्यों नागों को पाला जाए
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर कविता – हरिवंश राय बच्चन
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर,
क्यूंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका
Kadam Milakar Chalna Hoga – अटल बिहारी वाजपेयी
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
एक भी आँसू न कर बेकार – रामावतार त्यागी
एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
सरस्वती वंदना कविता – हंस वाहिनी वाणी दायिनी
सोच हमारी बिगड़ गई माते, बिगड़े बोल जुबां पर आए
केकई, द्रौपदी की जिव्हा पर आ मां तूने, बड़े-बड़े कई युद्ध कराए
पर अब उतर तू कृष्ण सी जिव्हा पर, एक और ज्ञान गीता जग चाहे
वेदव्यास सी बुद्धि दे माता, विवेकानंद सा ज्ञान रे
Kalam aaj unki jai bol – रामधारी सिंह दिनकर
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल










