सरस्वती वंदना कविता – हंस वाहिनी वाणी दायिनी
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सरस्वती वंदना कविता – हंस वाहिनी वाणी दायिनी

सोच हमारी बिगड़ गई माते, बिगड़े बोल जुबां पर आए
केकई, द्रौपदी की जिव्हा पर आ मां तूने, बड़े-बड़े कई युद्ध कराए
पर अब उतर तू कृष्ण सी जिव्हा पर, एक और ज्ञान गीता जग चाहे
वेदव्यास सी बुद्धि दे माता, विवेकानंद सा ज्ञान रे

Kalam aaj unki jai bol – रामधारी सिंह दिनकर

Kalam aaj unki jai bol – रामधारी सिंह दिनकर

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

होली पर प्रेरणादायक कविता | होली है तो आज | हरिवंश राय बच्चन
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होली पर प्रेरणादायक कविता | होली है तो आज | हरिवंश राय बच्चन

यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना – पाश

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना – पाश

श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है

संघर्ष और सफलता कविता – मंजिलों की क्या हैसीयत

संघर्ष और सफलता कविता – मंजिलों की क्या हैसीयत

कश्तियां कहाँ मना करती है
तूफानों से टकराने को
वो मांझी ही डर जाता है 
अपने आप को आजमाने को

Ramdhari Singh Dinkar Poems | रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं

Ramdhari Singh Dinkar Poems | रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं

सामने देश माता का भव्य चरण है
जिह्वा पर जलता हुआ एक बस प्रण है
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे
पीछे परन्तु सीमा से नहीं हटेंगे

बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँ
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बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँ

मैं, मैं हूँ
और सदा मैं ही रहूँ !

मैं क्यों खुद को बदलूँ ?
मेरी सोच मेरी है
जानता हूँ, ये खरी है !

भारत देश पर कविता | ये देश बनता है – सविता पाटिल
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भारत देश पर कविता | ये देश बनता है – सविता पाटिल

ये देश नही बनता केवल खेत-खलिहानों से
पहाड़ो से या मैदानों से
पठारों या रेगिस्तानों से
ये देश बनता है….
यहाँ बसते इंसानों से।

Chhoti si Kavita: हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है
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Chhoti si Kavita: हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है

हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है
मौन-सी लहरों में कुछ रहस्य जड़ा है
आसपास घूमते चेहरों में
एक किस्सा, अपनी एक दास्तां है
सभी एक सफर है
है कुछ न कुछ जो सभी ने सहा है
हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है।

परिवर्तन पर कविता: बदलाव करो निरंतर करो
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परिवर्तन पर कविता: बदलाव करो निरंतर करो

बदलाव करो, निरंतर करो
पर उसमें कुछ बेहतर करो

बदलाव हो जो जीवन सरल करे
जड़ता को विरल करे

बदलाव अज्ञानता से ज्ञान का
मूढ़ता से विद्यावान का