संघर्ष और सफलता कविता

संघर्ष और सफलता कविता – सविता पाटिल

कश्तियां कहाँ मना करती है
तूफानों से टकराने को
वो मांझी ही डर जाता है
अपने आप को आजमाने को
उम्र भला हमे कहाँ बूढ़ा करती है
ये तो हम ही छोड़ देते है
संग उत्साह और जवानी का
मंजिलों की क्या हैसियत
जो हमें ना मिले
होंसला हमारा जरूरी है
उन तक पहुँच जाने को
कोई मुसीबत भला
इतनी बड़ी कैसे हो सकती है
ये हम है जो मान बैठे है
खुद को तसल्ली दिलाने को
गलती यह नहीं कि गलती हो गयी
गलती तो यह है कि हम
गलतियाँ करे ही नही खुद को आजमाने को
माना सपनों के आकाश की
कोई सीमा नहीं होती
पर पंख तो हमें ही चाहिए
आसमां में उड़ जाने को
उम्मीद भला कब टूटती है खुद
यह तो हमारा ही डर है
जो लगा है इसे मिटाने को
असफलता का कोई हक
नहीं है हमारी ज़िंदगी में
पर हिम्मत भी तो नहीं जुटा पाते
हम सफलता को गले लगाने को
कुछ भी असंभव नहीं है इस जहां में
बस ठान लें हम
असंभव से संभव की दूरी मिटाने को

Hindi Kavita: परिश्रम पर आलस्य भारी

संघर्ष और सफलता कविता

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