संघर्ष और सफलता कविता – मंजिलों की क्या हैसीयतBy Kavita Dunia | February 1, 2021 संघर्ष और सफलता कविता – सविता पाटिलकश्तियां कहाँ मना करती हैतूफानों से टकराने कोवो मांझी ही डर जाता हैअपने आप को आजमाने कोउम्र भला हमे कहाँ बूढ़ा करती हैये तो हम ही छोड़ देते हैसंग उत्साह और जवानी कामंजिलों की क्या हैसियतजो हमें ना मिलेहोंसला हमारा जरूरी हैउन तक पहुँच जाने कोकोई मुसीबत भलाइतनी बड़ी कैसे हो सकती हैये हम है जो मान बैठे हैखुद को तसल्ली दिलाने कोगलती यह नहीं कि गलती हो गयीगलती तो यह है कि हमगलतियाँ करे ही नही खुद को आजमाने कोमाना सपनों के आकाश कीकोई सीमा नहीं होतीपर पंख तो हमें ही चाहिएआसमां में उड़ जाने कोउम्मीद भला कब टूटती है खुदयह तो हमारा ही डर हैजो लगा है इसे मिटाने कोअसफलता का कोई हकनहीं है हमारी ज़िंदगी मेंपर हिम्मत भी तो नहीं जुटा पातेहम सफलता को गले लगाने कोकुछ भी असंभव नहीं है इस जहां मेंबस ठान लें हमअसंभव से संभव की दूरी मिटाने कोHindi Kavita: परिश्रम पर आलस्य भारीसंघर्ष और सफलता कविता
बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँBy Kavita Duniaमैं, मैं हूँ और सदा मैं ही रहूँ ! मैं क्यों खुद को बदलूँ ? मेरी सोच मेरी है…
परिवर्तन पर कविता: बदलाव करो निरंतर करोBy Kavita Duniaबदलाव करो, निरंतर करो पर उसमें कुछ बेहतर करो बदलाव हो जो जीवन सरल करे जड़ता को विरल करे…
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