Hindi Kavita on Diwali | दिवाली पर कविता
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो,
दर काला, दीवारें काली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो,
दर काला, दीवारें काली!
भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए
शासन प्रशासन में अनैतिक कोई अनुबंध ना हो
स्वतंत्र तो हो गए हम 47 में,
पर स्वतंत्र का मतलब स्वच्छंद ना हो
सच्चे मित्र की है पहचान
काम आए बुरे वक्त में
बताए नहीं कभी एहसान
सो मित्रों के बराबर ऐसा
एक मित्र हो भाई समान
प्रधानमंत्री जी का है आव्हान
वृक्षारोपण का चल रहा अभियान
शासन प्रशासन के प्रयास तमाम
अनेक समस्याओं का समाधान
गिरि अरावली के तरु के थे
पत्ते–पत्ते निष्कंप अचल
बन बेलि–लता–लतिकाएं भी
सहसा कुछ सुनने को निश्चल।
युगों-युगों से युवा शक्ति ने दी पहचान,
हम सबको दिया आगे बढ़ने का ज्ञान।
अंतरिक्ष से, जाना हैं आगे हमें,
अपनी शक्ति अजमाना है हमें।
I am silver and exact.
I have no preconceptions.
Whatever I see
I swallow immediately
‘Twas on a Holy Thursday,
their innocent faces clean,
The children walking two & two,
in red & blue & green,
My heart was heavy,
for its trust had been
Abused, its kindness
answered with foul wrong;
1. To My Mother- Edgar Allan Poe
2. Mother to Son – Langston Hughes
3. Mother o’ Mine – Rudyard Kipling
4. My Mother – Ann Taylor