Hindi Kavita on Diwali | दिवाली पर कविता

Hindi Kavita on Diwali | दिवाली पर कविता

साथी, घर-घर आज दिवाली

फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!

हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!

आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!

– हरिवंशराय बच्चन

दीवाली

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!

छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!

पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!

राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!

– सोहन लाल द्विवेदी

दीपावली

आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।

दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।

जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।

दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।

– त्रिलोक सिंह ठकुरेला

दीपोत्सव

दीपोत्सव बीता, पर्व पुनीता,
जो खुशियाँ लेकर आया।
आनंदित मन का, अपनेपन का,
उजियारा जग में छाया।।
शुभ मंगलदायक, अति सुखदायक,
त्योंहारों के रस न्यारे।
उत्सव ये सारे, बने हमारे,
जीवन के गहने प्यारे।।

मन का तम हरती, रोशन करती,
रौनक जीवन में लाती।
जगमग दीवाली, दे खुशहाली,
धरती को अति सरसाती।।
लक्ष्मी घर आती, चाव चढ़ाती,
नव जीवन फिर मिलता है।
आनंद कोष का, नवल जोश का,
शुचि प्रसून सा खिलता है।।

मानव चित चंचल, प्रेम दृगंचल,
उत्सवधर्मी होता है।
सुख नव नित चाहे, मन लहराये,
बीज खुशी के बोता है।।
पल आते रहते, जाते रहते,
अद्भुत जग की माया है।
जब दुख जाता है, सुख आता है,
धूप बाद ही छाया है।।

दीपक से सीखा, त्याग सरीखा,
जीवन पर सुखदायी हो।
सब अंधकार की, दुराचार की,
मन से सदा विदायी हो।।
रख हरदम आशा, छोड़ निराशा,
पर्वों से हमने जाना।
सुखमय दीवाली, फिर खुशहाली,
आएगी हमने माना।।

– शुचिता अग्रवाल

दीपावली

जगमग-जगमग करते दीपक
लगते कितने मनहर प्यारे,
मानों आज उतर आये हैं
अम्बर से धरती पर तारे !

दीपों का त्योहार मनुज के
अतंर-तम को दूर करेगा,
दीपों का त्योहार मनुज के
नयनों में फिर स्नेह भरेगा!

धन आपस में बाँट-बूट कर
एक नया नाता जोड़ेंगे,
और उमंगों की फुलझड़ियाँ
घर-घर में सुख से छोड़ेंगे !

दीपावलि का स्वागत करने
आओ हम भी दीप जलाएँ,
दीपावलि का स्वागत करने
आओ हम भी नाचे गाएँ !

– महेन्द्र भटनागर

दीपों का त्यौहार

दीपों का त्यौहार दिवाली
आओ दीप जलाएँ,
भीतर के अंधियारे को हम
मिलकर दूर भगाएँ।

छत्त पर लटक रहे हों जाले
इनको दूर हटाएँ,
रंग-रोगन से सारे घर को
सुन्दर सा चमकाएँ।

अनार, पटाखे, बम-फुलझडी,
चकरी खूब चलाएँ,
हलवा-पूड़ी, भजिया-मठी
कूद-कूद कर खाएँ।

सुन्दर-सुन्दर पहन के कपड़े
घर-घर मिलने जाएँ,
इक दूजे में खुशियाँ बाँटे,
अपने सब बन जाएँ।

– दीनदयाल शर्मा

लो दिवाली की बधाई मित्रवर

लो दिवाली की बधाई, मित्रवर !
लो दिवाली की मिठाई, मित्रवर !

एक दीपक के लिए मुहताज घर
आपने बस्ती जलाई, मित्रवर !

जल चुका रावण, न बुझती है चिता
आग यह कैसी लगाई, मित्रवर !

चौखटों की छाँह तक बीमार है
क्यों हवा ऐसी चलाई, मित्रवर !

अब रहो तैयार लुटने के लिए,
रोशनी तुमने चुराई, मित्रवर !

हर अँधेरी जेल तोडी जायगी,
यह कसम युग ने उठाई, मित्रवर !

– ऋषभ देव शर्मा

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