पहलगाम आतंकी हमला 2025 कविता– यह कविता 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम, कश्मीर में धर्म के आधार पर हुए आतंकी हमले में मारे गए निर्दोष पर्यटकों को समर्पित है। रचना उन मासूमों की पीड़ा, उनके परिवारों के दुःख और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के विरुद्ध भारत के कठोर संदेश को उजागर करती है। यह कविता आतंक के खिलाफ एक साहित्यिक प्रतिरोध है।

बलिदान नहीं अब सिर्फ इन्तकाम चाहिए
अब ना उरी, ना पुलवामा, ना पहलगाम चाहिए
ना शब्दों के मरहम, ना राजनीति,
न झूठे बयान चाहिए
मजहब पूछ कर मारी गोली,
और कितना कठिन इम्तिहान चाहिए
घायल हो गई आत्मा,
आत्मा को अब आराम चाहिए
बलिदान नहीं अब सिर्फ इन्तकाम चाहिए
जा रहा है बलिदान व्यर्थ
बयानों का नहीं कोई अर्थ
सीमा पर है घोर अनर्थ
कैसे माने हम हैं समर्थ
ब्रह्मोस, पृथ्वी और अग्नि से राफेल तक
अरबों हमने किये खर्च
बहा दें समुद्र में इनको
या तो प्रयोग करें बिना शर्त
सर्जिकल/ एयर स्ट्राइक से बड़ा
एक और कोई अंजाम चाहिए
बलिदान नहीं अब सिर्फ इन्तकाम चाहिए
मुश्किल है देखना टीवी इन दिनों
उससे भी मुश्किल पढ़ना अखबार
कलेजा भर आता पर्यटकों की शहादत पर
देख आंसुओं की बहती बयार
सूख गए मांओं के आंसू
पिता दिखे बेबस लाचार
भाई रो रहा खून के आंसू
असहनीय है बहनों की चीत्कार
सूनी हो गई मांग पत्नी की
बंद हुई चूड़ियों की झनकार
बच्चों की तो दुनिया ही खत्म
सारा जीवन बस लगना है भार
गर्व है हमें 28 की ही शहादत पर
पर अब एक जान की कीमत सो जान चाहिए
बलिदान नहीं अब सिर्फ इंतकाम चाहिए
देश तैयार है सब सहने को
पर सहन नहीं होता, कम होता सम्मान
बंद करें बखान अतीत का
अपमानित है आज वर्तमान
जनमत साथ है सुविधाएं त्यागने को
बचा रहे बस आत्मसम्मान
भूल जाएं कुछ समय लोकतंत्र,
न्यायालय या मानवाधिकार का नाम
बाहर निकालें परमाणु, पनडुब्बी,
मिसाइल और कीमती यान
सेना को दें स्वतंत्रता पूरी
टुकड़ों में बांट दे पाकिस्तान
आर-पार की जंग चाहिए
चाहे जो भी हो परिणाम
पहलगाम के इन शहीदों का
अंतिम होना यह बलिदान चाहिए
बलिदान नहीं अब सिर्फ इन्तकाम चाहिए