राष्ट्रवाद पर कविता – अखंड भारत का सपना | जोश भर देने वाली देशभक्ति कविता
राष्ट्रवाद पर कविता- कविता में राष्ट्रीयता और भारतीयता पर गर्व करने का आह्वान है, साथ ही भारत के उज्ज्वल भविष्य की ओर आशा व्यक्त की गई है। यह नई पीढ़ी को अपनी विरासत पर गर्व करने और “राष्ट्र प्रथम” की भावना को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। चाणक्य के सपनों का भारत बनाने के लिए शास्त्र और शस्त्र दोनों के संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। नीचे आप इस “राष्ट्रवाद पर कविता” को पढ़ सकते हैं-
अखंड भारत का सपना,
चाणक्य ने कभी सजाया था
चंद्रगुप्त के माध्यम से,
भारत भव्य विशाल बनाया था
शक, हूण, कुषाणों को भी,
आगे हमने अपनाया था
फिर हुआ अंग्रेजों का आगमन
राष्ट्रवाद का हुआ समापन
छोटे-छोटे राज्यों को ही,
हमने माना अपना वतन
स्वतंत्र होते ही भारत हारा,
अखंड भारत का हुआ विघटन
राष्ट्रीयता पर धर्म की तवज्जो से,
कट गया देश का बड़ा हिस्सा
कुत्सित राजनीतिक चालों में उलझकर,
मची भयावह मारकाट और हिंसा
पर छोड़ें जो छिटक गया,
वह था कल का काला किस्सा
भारत राष्ट्र, एक भूभाग विशेष
राष्ट्रवाद, अनुराग भाव का देता संदेश
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर,
शास्त्रों में समाहित हैं उपदेश
गर्व करें हम भारतीयता पर,
देश में रहें या रहें परदेस
भविष्य निश्चित ही है देदीप्यमान,
शानदार बन रही संभावनाएं
दुनिया में फिर मान बढ़ा है,
हम भी अपना कर्तव्य निभाएं
जाति, भाषा, मजहब से ऊपर,
राष्ट्रवाद का भाव जगाएं
मुश्किल नहीं राम राज्य भारत में,
शुद्ध सनातनी, हो भावनाएं
बटना नहीं है, कटना नहीं है,
राष्ट्र से बड़ा कोई धर्म नहीं है,
हम समझें, औरों को समझाएं
हम नहीं, राष्ट्र प्रथम की भावना,
दिल से हम अमल में लाएं
शानदार रही है विरासत हमारी,
नई पीढ़ी को गर्व कराएं
राष्ट्र सुरक्षित तो हम सुरक्षित,
सुरक्षित हों राष्ट्र की सीमाएं
शास्त्र और शस्त्र दोनों के समन्वय से,
चाणक्य के सपनों का देश बनाएं
जय हिंद जय भारत
यह “राष्ट्रवाद पर कविता” हमारी गौरवशाली भारतीय विरासत, अखंड भारत के स्वप्न, और राष्ट्रीय एकता की भावना को समर्पित एक सशक्त अभिव्यक्ति है। यह कविता धर्म, जाति, और भाषा से ऊपर उठकर राष्ट्र प्रथम की भावना जगाने और भारत के उज्ज्वल भविष्य की दिशा में प्रेरणा प्रदान करती है।
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