वीर तेजाजी महाराज कविता – Veer Tejaji Maharaj
गायें मीणा ले गये, एक घोर निराशा फैली थी,
उन चोरो की करतूतों से, मारवाड़ की सुचिता मेली थी।
गायें मीणा ले गये, एक घोर निराशा फैली थी,
उन चोरो की करतूतों से, मारवाड़ की सुचिता मेली थी।
हिसाब लगा के देख लो
दुनिया के हर रिश्ते में
कुछ अधूरा आधा निकलेगा
एक मां का प्यार है जो दूसरों से..
मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना चिड़िया को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है, वहॉं हवा में उन्हें अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है, पर पानी के लिए भटकना है, यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है। बाहर दाने…
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना थाभावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारास्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना थाढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों कोएक अपनी शांति…
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ हैतूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ हैजिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा हैजो रवि के रथ का घोड़ा हैवह जन मारे नहीं मरेगानहीं मरेगा . . . जो जीवन की आग जला कर आग बना हैफौलादी पंजे…
गिनो न मेरी श्वास,
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
खरीदे हुए विश्व-ईमान !!
अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
लड़ने तक महमान….. खीचों राम-राज्य लाने को
सूर्य ढलता ही नहीं है – रामदरश मिश्र | Suraj Par Kavita चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं हैदोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है! आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों सेबंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों सेहैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तरचिड़चिड़ाकर कह रहे-…
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
बहुत दिनों के बाद छिड़ी है
वीणा की झंकार अभय
बहुत दिनों के बाद समय ने
गाया मेघ मल्हार अभय
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए