सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मेरा नाम सिपाही है – मनोज मुंतशिर की देशभक्ति कविताएं
सरहद पे गोली खाके जब टूट जाए मेरी सांस
मुझे भेज देना यारों मेरी बूढ़ी मां के पास
बड़ा शौक था उसे मैं घोड़ी चढूं
धमाधम ढोल बजे
तो ऐसा ही करना
अर्धनारीश्वर – रामधारी सिंह दिनकर – Rashtrakavi Dinkar
एक हाथ में डमरू, एक में वीणा मधुर उदार,
एक नयन में गरल, एक में संजीवन की धार।
जटाजूट में लहर पुण्य की शीतलता-सुख-कारी,
बालचंद्र दीपित त्रिपुंड पर बलिहारी! बलिहारी!
शिवाजी महाराज कविता हिंदी – रोहित सुल्तानपुरी
9 फरवरी 1630 जन्मे महाराष्ट्र दुर्ग शिवनेरी,
धन्य हुई धरती भारत की हम करते जयकार तेरी।
जिसका नाम नहीं मरता हर दिल में बस जाता है,
ऐसा वीर पुरूष क्षत्रपति शेर शिवाजी कहलाता है।
वीर तेजाजी महाराज कविता – Veer Tejaji Maharaj
गायें मीणा ले गये, एक घोर निराशा फैली थी,
उन चोरो की करतूतों से, मारवाड़ की सुचिता मेली थी।
मनोज मुंतशिर कविता माँ | माँ की ममता हिंदी कविता
हिसाब लगा के देख लो
दुनिया के हर रिश्ते में
कुछ अधूरा आधा निकलेगा
एक मां का प्यार है जो दूसरों से..
मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना चिड़िया को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है, वहॉं हवा में उन्हें अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है, पर पानी के लिए भटकना है, यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है। बाहर दाने […]
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है – हरिवंशराय बच्चन
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना थाभावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारास्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना थाढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों कोएक अपनी शांति […]
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है – केदारनाथ अग्रवाल
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ हैतूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ हैजिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा हैजो रवि के रथ का घोड़ा हैवह जन मारे नहीं मरेगानहीं मरेगा . . . जो जीवन की आग जला कर आग बना हैफौलादी पंजे […]
खीचों राम-राज्य लाने को, भू-मंडल पर त्रेता – माखनलाल चतुर्वेदी
गिनो न मेरी श्वास,
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
खरीदे हुए विश्व-ईमान !!
अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
लड़ने तक महमान….. खीचों राम-राज्य लाने को










