मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

मुक्ति की आकांक्षा

मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहॉं हवा में उन्‍हें
अपने जिस्‍म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहॉं चुग्‍गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्‍वर है।
फिर भी चिड़िया
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

2 thoughts on “मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना”

  1. Pingback: मेहनतकश पर कविता - कविता दुनिया| श्रमिक दिवस 2023 - कविता दुनिया

  2. Pingback: बाल विवाह कविता - हिंदी कविता

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top