चाँदनी की पाँच परतें,
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कच्ची सड़क – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
नीम की निबोलियाँ उछालती
सूरज को नही डूबने दूंगा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
देखो मैने कंधे चौडे कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एडियाँ जमाकर
खडा होना मैने सीख लिया है
Hindi Kavita: अगर कहीं मैं घोड़ा होता – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
अगर कहीं मैं घोड़ा होता
वह भी लंबा चौड़ा होता
तुम्हें पीठ पर बैठा कर के
बहुत तेज मैं दौड़ा होता
मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
मुक्ति की आकांक्षा – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना चिड़िया को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है, वहॉं हवा में उन्हें अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है, पर पानी के लिए भटकना है, यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है। बाहर दाने…