विपक्ष की एकता पर कविता: सारे इकट्ठे हैं पटना

विपक्ष की एकता पर कविता

विपक्ष की एकता पर कविता – प्रदीप नवीन

क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना,
एक नाम बस सूझा है
मोदी मोदी ही रटना
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
एक टीएमसी, जदयू फदयू
और खडी है आप,
ठंडा ठंडा सभी पी रहे
चेहरे पर संताप।
अपने विचारों से कोई
कैसे चाहेगा हटना?
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
दक्षिण सारा आन पडा है
वाम, नाम या शाम,
भले ही खुद के राज्य मे
नहीं है कुछ भी दाम।
सिर्फ दिखाने को चेहरे
एक दूजे से सटना।
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
मुफ्त मिली उमर किसी को
कश्मीरी केशर,
लगे दिखाने उसी गंध से
वे अपना प्रेशर।
सब ये जानें सबके आगे
कैसे क्या डटना।
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
डोर थामना सबकी चाहे
हाथों का पंजा,
सूत रखा है अलग ही सबसे
कुछ अच्छा मंजा।
सभी जानते क्या होती है
सुबह की पौ फटना।
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
देश मे ही हैं दुश्मन ज्यादा
उलटफेर करने आमादा,
जैसे तैसे वोट मिलें इनके
चाहे जैसा कर देते हैं वादा।
देश की खातिर सोचो इतना
पडे नहीं टुकडों मे बंटना।
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
झारखंड, दिल्ली, बंगाली
राष्ट्र प्रेम की है कंगाली,
जन्मपत्रिका सभी दलों की
आज किसीने नहीं खंगाली?
अनायास जो उमड पडे हैं
देखो उस बादल का छटना।
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
इतने दलों से एक अकेला
करने निकला युद्ध,
आसमान सा साफ है नक्शा
और नीयत है शुद्ध।
साथ निभाना है जनता को
तनिक नहीं नटना।
क्या अजीब है ये घटना
सारे इकट्ठे हैं पटना
विपक्ष की एकता पर कविता

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