विश्वकर्मा जी पर कविता | भगवान विश्वकर्मा जयंती
सतयुग में स्वर्ग लोक बनाया,
त्रेता में किया लंका निर्माण
द्वापर में द्वारिका तो
कलयुग में इंद्रप्रस्थ को दिया अंजाम
पुरी में भी बनाया मंदिर,
जिसमें विराजित कृष्ण, सुभद्रा और बलराम
सतयुग में स्वर्ग लोक बनाया,
त्रेता में किया लंका निर्माण
द्वापर में द्वारिका तो
कलयुग में इंद्रप्रस्थ को दिया अंजाम
पुरी में भी बनाया मंदिर,
जिसमें विराजित कृष्ण, सुभद्रा और बलराम
संस्कृत जननी है विश्व भाषाओं की,
मानता है सारा संसार
हमारी क्षेत्रीय भाषाओं का भी,
संस्कृत ही है मूल आधार
देववाणी रही संस्कृत
कंकर-कंकर, शंकर जहां पर,
कण-कण में है भगवान,
है राम से राम-राम तक,
श्वाश-श्वाश में बसते राम
राम इस देश के है,
ये देश राम का है
राममय है जीवन हमारा,
यह सामाजिक परिवेश राम का है
दिन की शुरुआत राम-राम से,
जीवन का अंत राम-नाम से
जो कुछ भी हम बन पाये अब तक,
यह अनुग्रह सर्वेश राम का है
सतयुग, द्वापर, त्रेता बीता,
चल रहा है कलयुग का काल
शुरुआत ही है कलिकाल की,
चलना और हजारों साल
घर-घर कंश है दर-दर दुर्योधन,
एक नही पर गिरधर गोपाल
शिक्षकों पर निर्भर है दुनिया,
शिक्षक बढ़ाते देश का मान
भौतिकता पर नैतिकता का अंकुश,
शिक्षक ही रखते महावत समान
पादरी चलाते देश कहीं तो,
कहीं मूल्ला रखते हाथ में कमान
जैसी जिसकी शिक्षा वेसा,
देश उनका उतना बनता महान
मेल के भेल से निर्मित,
हाथी का पाया विशाल आकार
शून्य से शिखर पर पहुंचे,
शिव गणों के बने सरदार
मुझे ना कर्मकांड याद है,
न धार्मिक विधि-विधान याद है
पितरों की पूजन का समय क्या,
नियम क्या, यह सब मुझे नहीं याद है
हर समय उचित पितृ पूजन का,
मेरी तो सब से यही फरियाद है
हमारी हर सफलता के पीछे,
कोरोना की होगी निश्चित हार शुभ ही शुभ घटता प्रकृति में, शुभ प्रकृति का, स्थायी व्यवहार। शुभ के लिए ही जन्मते धर्म, शुभ के लिए ही होते अवतार। सनातन धर्म है शुभ सदा से, विज्ञान को हमने माना आधार। शुभ संस्कृति में रहा समाहित, जिससे शुद्ध रहे आचार विचार। शुभ, शुद्ध और संयम का संतुलन,…
जब कोरोना छट जाएगा,
नया युग तब आएगा।
इतिहास लिखा जाएगा ऐसे,
युग समाप्त हुआ हो जैसे।
एक कोरोना के पहले,
एक कोरोना के बाद।
क्या होगा कोरोना के बाद?