दशहरा पर कविता
रावण एक था त्रेता युग में,
द्वापर में कंस और सो कौरव
आतंक था लोक, परलोक तक,
जरूरी था, जन्मे कोई महामानव
ईश्वर के अवतार हुए तब,
इनका नाश हुआ संभव
प्रत्यक्ष थी दुष्टता इनकी,
दुष्ट रूप में ही था इनका गौरव
आज हर घर, गली, मोहल्ले में,
मचा रखा है इनने कलरव
जितने आते नजर सामने, उससे ज्यादा इन्हें,
उजले कपड़ों में हम पाएं
घर घर रावण, दर-दर लंका,
इतने राम कहां से लाऐं
हर वर्ष दहन होता रावण,
पर अगले साल और बड़ा होता है
पहले शहर में एक जलता था,
अब हर मोहल्ले में खड़ा होता है
कौन जलाए, किस के फोटो आए,
यह प्रश्न बड़ा होता है
जिसमें रत्ती भर भी नहीं अंश राम का,
सिर्फ खोल चढ़ा होता है
पद, पैसा और प्रतिष्ठा के दम पर,
वही राम होने पर अड़ा होता है
हम सब मानते राम अपने को,
पर दूसरे भी माने ऐसा अपना चरित्र बनाएं
घर घर रावण, दर-दर लंका,
इतने राम कहां से लाऐं
दशहरा पर कविता
राम होना सरल नहीं है,
पर जो सरल हो गया बस वही राम है
छल, कपट, काम, क्रोध और मोह, लोभ से,
जो विरल हो गया वही राम है
मन, मस्तिष्क और शरीर,
आत्मा से जो तरल हो गया वही राम है
बुद्धि के प्रश्नों का बुद्धि से,
और ह्रदय के प्रश्नों का हृदय से,
जो हल दे गया वही राम है
मर्यादा की अंतिम सीमा,
किंचित मात्र भी कहीं कमी ना,
ऐसा जो आत्मबल दे गया वही राम है
राम का नाम कर राम से आगे,
पापियों को भी जो संबल दे गया वही राम है
राम का चरित्र स्वयं ही काव्य है, कसौटी है,
जो कोई भी इसमे ढल गया, वही राम है
सीता को सुरक्षित रखा अग्नि से,
और स्वयं जल में जो जल गया वही राम है
राम हम बन सकते नहीं,
पर राम करें इंसान तो हम संपूर्ण बन पाऐं
घर घर रावण, दर-दर लंका,
इतने राम कहां से लाऐं
उद्देश्य है हमारा विजयदशमी पर,
दस विकारों पर विजय हम पाएं
प्रथम हो धर्म की प्राथमिक जानकारी,
अपने को सोनाक्षी सिन्हा बनने से बचाएं
द्वितीय, द्विज हों संस्कारों से पोषित,
यह बुजुर्गों के सम्मान से हम विरासत में पाएं
तृतीय, चरित्र में करें सुधार,
जिसकी असीम सभी में संभावनाएं
चौथा, नशा जो चीजों का हो, नेट का,
चैट का या क्रिकेट का इससे थोड़ी दूरी बनाएं
पांचवा, शास्त्र पढ़ने की हम डाले आदत,
पढ़ेंगे तो ही बढेंगे, की अपनाएं, धारणाएं
छटा, शास्त्र और शस्त्र में हो संतुलन,
स्वाभिमान पर आए तो शस्त्र चलाएं
दशहरा पर कविता
सात, समय प्रबंधन है बड़ी आवश्यकता,
समय खर्चने में कंजूसी दिखाएं
आठ, समाज से हमने पाया है, सबकुछ,
हर संभव समाज को भी कुछ लोटायें
नवा, नकारात्मकता पर, सकारात्मकता को विजय दिलाकर,
विचारों में अपने पवित्रता लाएं
दस है जल्दी सोना, जल्दी उठना,
यह उम्र हमारी कई साल बड़ाये
और भी है विकार, जिनमें सुधार,
हमारी हो आवश्यकताएं
हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा,
स्वयं में राम का प्रतिबिंब लाएं
हर प्राणी में देखे राम, मानवीय सद्गुणों से, हम जगमगाएं
एक बुरा आदमी कम हो सकता है दुनिया से,
सिर्फ एक हम अच्छे हो जाएं
जरूरत नहीं फिर रावण दहन की,
ना ही चिंता की इतने कहां से लाऐं
घर घर रावण, दर-दर लंका,
इतने राम कहां से लाऐं