Harivansh rai bachchan ki rachnaye – Patriotic kavitayen in hindi
सुमति स्वदेश छोड़कर चली गई,
ब्रिटेन-कूटनीति से छलि गई,
अमीत, मीत; मीत, शत्रु-सा लगा,
अखंड देश खंड-खंड हो गया।
सुमति स्वदेश छोड़कर चली गई,
ब्रिटेन-कूटनीति से छलि गई,
अमीत, मीत; मीत, शत्रु-सा लगा,
अखंड देश खंड-खंड हो गया।
चश्मा आंखों की नई रोशनी,
करता है नजरों की सहायता।
धूप-छाँव के खेल में साथी,
धुन्दलेपन से दिलाता स्वतंत्रता।
ज्ञान की अग्नि में जलकर जगमगाते हैं हम,
जीवन को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाते हैं हम।
ज्ञान की सीढ़ी चढ़कर हम उच्चाईयों को छू सकते हैं,
भिक्षुक
वह आता–
दो टूक कलेजे को करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को
हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है
हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ
कामचोरी का संसार देख,
आँखे भी हैरान है,
परिश्रम की बात से भागते,
क्यों लोग विकास से अंजान है।
पहले पाठ में सीखेंगे हम,
जीवन की अनमोल विद्याएं।
संघर्ष का वह मार्ग चुनेंगे,
जो आए सफलता में काम।
दूसरे पाठ में सीखेंगे हम,
कठिनाइयों को आसान करना।
पत्थर हूँ मैं, कठोर हूँ मैं,
अपनी मजबूती में छिपा हूँ मैं।
मेरी कठिनाईयों को तुम समझ न पाओगे,
हर संघर्ष में बचपन से खड़ा हूँ मैं।
महिला, सशक्तिकरण की
ओर आगे बढ़ रही है,
हर एक क्षेत्र में वो सम्मान पा रही है।
जीवन के संघर्षों का नया मुकाम है वो,
अज्ञानता की अंधेरी दुनिया में,
ज्ञान का प्रकाश फैलाएं हम।
शिक्षा का महत्व समझाएं इन्सानों को,
उनके मन को चमकाएं नयी रोशनी के संग।