Hindi Kavita

वैश्य - मैथिलीशरण गुप्त

वैश्य – मैथिलीशरण गुप्त | वैश्यो! सुना, व्यापार सारा मिट चुका

वैश्यो! सुना, व्यापार सारा मिट चुका है देश का,
सब धन विदेशी हर रहे हैं, पार है क्या क्लेश का?
अब भी न यदि कर्तव्य का पालन करोगे तुम यहाँ-

शूद्र - मैथिलीशरण गुप्त

शूद्र – मैथिलीशरण गुप्त | शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी

शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी जा रही,
है योगियों को भी अगम जो व्रत तुम्हारा है वही।
जो मातृ-सेवक हो वही सुत श्रेष्ठ जाता है गिना,

Gyan Par Kavita

Gyan Par Kavita: ज्ञान की अग्नि में जलकर

ज्ञान की अग्नि में जलकर जगमगाते हैं हम,
जीवन को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाते हैं हम।
ज्ञान की सीढ़ी चढ़कर हम उच्चाईयों को छू सकते हैं,

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