सच है – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
यह सच है-
तुमने जो दिया दान दान वह,
हिन्दी के हित का अभिमान वह,
जनता का जन-ताका ज्ञान वह,
सच्चा कल्याण वह अथच है–
यह सच है-
तुमने जो दिया दान दान वह,
हिन्दी के हित का अभिमान वह,
जनता का जन-ताका ज्ञान वह,
सच्चा कल्याण वह अथच है–
रुकेंगे तो मरेंगे, कहती है पत्रिका, जीवन का मालिन्य, उधार, जो रचा नहीं, मन बहुत सोचता है
“बिखरी लट, आँसू छलके, यह सुस्मित मुख क्यों दीन हुआ?
कविते! कह, क्यों सुषमाओं का विश्व आज श्री-हीन हुआ?
संध्या उतर पड़ी उपवन में? दिन-आलोक मलीन हुआ?
किस छाया में छिपी विभा? श्रृंगार किधर उड्डीन हुआ?
भारत की है जिससे पहचान,
सारी दुनिया में जिनका मान
समाधि जिनकी तीर्थ समान,
हर नेता के प्रथम भगवान
गांधी नाम का जप कर कर,
श्री गणेश होता चुनाव अभियान
बधाई वैज्ञानिकों को, बधाई इसरो को,
बहुत-बहुत बधाई अध्यक्ष सोमनाथ
बधाई पूर्व अध्यक्ष के. सिवन को,
सफलता में उनका भी बड़ा हाथ
सारी टीम हकदार बधाई की,
1. दीप अभी जलने दे, भाई!
2. मुझ से चाँद कहा करता है
3. विश्व सारा सो रहा है!
4. तूने क्या सपना देखा है?
चुभते ही तेरा अरुण बान!
बहते कन कन से फूट फूट,
मधु के निर्झर से सजल गान।
इन कनक रश्मियों में अथाह,
लेता हिलोर तम-सिन्धु जाग;
चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!
हे ब्राह्मणो! फिर पूर्वजों के तुल्य तुम ज्ञानी बनो,
भूलो न अनुपम आत्म-गौरव, धर्म के ध्यानी बनो।
कर दो चकित फिर विश्व को अपने पवित्र प्रकाश से,
हे क्षत्रियो! सोचो तनिक, तुम आज कैसे हो रहे;
हम क्या कहें, कह दो तुम्हीं, तुम आज जैसे हो रहे।
स्वाधीनता सारी तुम्हीं ने है न खोई देश की?