चश्मा पर कविता – धूप, धूल या हो बरसात, हर पल आँखों पर पहरा है

चश्मा पर कविता

चश्मा पर कविता

चश्मा आंखों की नई रोशनी,
करता है नजरों की सहायता।
धूप-छाँव के खेल में साथी,
धुन्दलेपन से दिलाता स्वतंत्रता।
दूर को नज़दीक, पास को दूर करे,
चश्में का यही चमत्कार है।
बुझती आँखों को जगाया इसने
फिर से जग को जगमगाया इसने।
धूप, धूल या हो बरसात,
हर पल आंखों पर पहरा है।
पीड़ा न हो आंखों को प्रकाश से,
उस क्षण भी इसने इन्हें घेरा है।
छोटे अक्षर भी बड़े दिखते है,
आंखों से न फिर परे दिखते है।
छोटा-बड़ा आदमी, सोच पर निर्भर है,
इसको तो सब मनुष्य समान दिखते है।
बुढ़ापे में भी दूर चाँद को साफ़ दिखाए,
ऐसा अनोखा आँखो का तारा है।
अंधकार मिटाने वाली किरण ये,
हमारी आँखों का सहारा है।
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