चश्मा पर कविता

चश्मा पर कविता – धूप, धूल या हो बरसात, हर पल आँखों पर पहरा है

चश्मा आंखों की नई रोशनी,
करता है नजरों की सहायता।
धूप-छाँव के खेल में साथी,
धुन्दलेपन से दिलाता स्वतंत्रता।