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मैं अकेला – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
मैं अकेला;
देखता हूँ, आ रही
मेरे दिवस की सान्ध्य बेला।
सच है – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
यह सच है-
तुमने जो दिया दान दान वह,
हिन्दी के हित का अभिमान वह,
जनता का जन-ताका ज्ञान वह,
सच्चा कल्याण वह अथच है–