मैं अकेला – सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाBy Kavita Dunia | February 15, 2024 मैं अकेलामैं अकेला;देखता हूँ, आ रहीमेरे दिवस की सान्ध्य बेला।—पके आधे बाल मेरेहुए निष्प्रभ गाल मेरे,चाल मेरी मन्द होती आ रही,हट रहा मेला।—जानता हूँ, नदी-झरनेजो मुझे थे पार करने,कर चुका हूँ, हँस रहा यह देख,कोई नहीं भेला—ये भी देखें : भिक्षुकसच हैमैं अकेला
सच है – सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाBy Kavita Duniaयह सच है- तुमने जो दिया दान दान वह, हिन्दी के हित का अभिमान वह, जनता का जन-ताका ज्ञान…
भिक्षुक – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”| bhikshuk kavitaBy Kavita Duniaभिक्षुक वह आता-- दो टूक कलेजे को करता, पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल…