भ्रम – सुभद्रा कुमारी चौहान
देवता थे वे, हुए दर्शन, अलौकिक रूप था
देवता थे, मधुर सम्मोहन स्वरूप अनूप था
देवता थे, देखते ही बन गई थी भक्त मैं
हो गई उस रूपलीला पर अटल आसक्त मैं
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देर क्या थी? यह मनोमंदिर यहाँ तैयार था
वे पधारे, यह अखिल जीवन बना त्यौहार था
झाँकियों की धूम थी, जगमग हुआ संसार था
सो गई सुख नींद में, आनंद अपरंपार था
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किंतु उठ कर देखती हूँ, अंत है जो पूर्ति थी
मैं जिसे समझे हुए थी देवता, वह मूर्ति थी
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