शूद्र – मैथिलीशरण गुप्त | शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी

शूद्र - मैथिलीशरण गुप्त

शूद्र – मैथिलीशरण गुप्त

शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी जा रही,

है योगियों को भी अगम जो व्रत तुम्हारा है वही।

जो मातृ-सेवक हो वही सुत श्रेष्ठ जाता है गिना,

कोई बड़ा बनता नहीं लघु और नम्र हुए बिना॥

रक्खो न व्यर्थ घृणा कभी निज वर्ण से या नाम से,

मत नीच समझो आपको, ऊँचे बनो कुछ काम से।

उत्पन्न हो तुम प्रभु-पदों से जो सभी को ध्येय हैं,

तुम हो सहोदर सुरसरी के चरित जिसके गेय हैं॥

ब्राह्मण – मैथिलीशरण गुप्त

शूद्र – मैथिलीशरण गुप्त

1 thought on “शूद्र – मैथिलीशरण गुप्त | शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी”

  1. Pingback: वैश्य - मैथिलीशरण गुप्त | वैश्यो! सुना, व्यापार सारा मिट चुका

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top