Mahadevi Verma Poems In Hindi | Mahadevi Verma Ki Rachna
मैं अनंत पथ में लिखती, मिटने का अधिकार,
कोयल, कहाँ रहेगी चिड़िया, जो तुम आ जाते हो एक बार, जब यह दीप थके तब आना
मैं अनंत पथ में लिखती, मिटने का अधिकार,
कोयल, कहाँ रहेगी चिड़िया, जो तुम आ जाते हो एक बार, जब यह दीप थके तब आना
प्रकृति संदेश, काश ज़िंदगी एक किताब होती,
समय, मंजिल तुझे पाना है,
बचपन, मकान, हिंदी भाषा,
नीला रंग, रिश्ता, जानवरो पर संकट
आँचल बुनते रह जाओगे,
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है,
आदमी का आकाश,
ज़िंदगी एक रस, तन बचाने चले थे
1. अब तो पथ यही है, 2. धर्म,
3. तीन दोस्त, 4. आग जलती रहे,
5. कौन यहाँ आया था,
6. वो आदमी नहीं है मुकम्मल..
तुमने न बना मुझको पाया,
युग-युग बीते, मैं न घबराया;
भूलो मेरी विह्वलता को,
निज लज्जा का तो ध्यान करो!
इस पार, प्रिये, मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा
यह चाँद उदित होकर नभ में
कुछ ताप मिटाता जीवन का
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
अगर कहीं मैं घोड़ा होता
वह भी लंबा चौड़ा होता
तुम्हें पीठ पर बैठा कर के
बहुत तेज मैं दौड़ा होता
आज फिर लौटा सलामत
राम कोई अवध में,
हो गया पूरा कड़ा
बनवास तो अच्छा लगा।
अगर कभी मैं रूठ गया तो,
माँ ने बहुत स्नेह से सींचा।
कितनी बड़ी शरारत पर भी,
जिसने कान कभी ना खीँचा।