गुड़ी पड़वा ही हो नव वर्ष हमारा
ऋतुराज बसंत हो जब पूरे उफ़ान पर
फसलें आती किसान के घर खलिहान पर
सारे वर्ष का खर्च निर्भर,
मंडी में बिके इसी खाद्यान्न पर
बाजारों में रौनक होती,
हर्ष उल्लास का होता नजारा
गुड़ी पड़वा ही हो नव वर्ष हमारा
ब्रह्मा जी ने आज ही,
किया था सृष्टि निर्माण
विक्रम संवत का विक्रमादित्य ने,
आज ही किया आव्हान
मराठी राजा शालिवाहन ने,
मिट्टी के सैनिकों में दिखाई जान
भास्कराचार्य ने प्रारंभ किया,
पूर्ण वैज्ञानिक भारतीय पंचांग
भगवा ध्वज से आच्छादित हो, अब देश सारा
गुड़ी पड़वा ही हो नववर्ष हमारा
अंग्रेजी नव वर्ष नहीं स्वीकार हमें,
दिनकर ने रची थी कविता
पश्चिमीकरण का प्रभाव दिखता,
गुलामी की बनती मानसिकता
नशे और भद्दे नाच गानों से,
पथभ्रष्ट होती आधुनिकता
भव्यता दिव्यता से दुर्गा उपासना में ही,
भक्तों को दिखता मात्र सहारा
गुड़ी पड़वा ही हो नववर्ष हमारा
प्रकृति में इसी समय,
नवीनता का होता सृजन
नव कपोलें उगती,
पुराने पत्तों का होता क्षरण
किसी भी कसौटी पर देखें,
विज्ञान सम्मत बनता कारण
नव राम मंदिर निर्माण से,
धार्मिकता का बना वातावरण
यह धार्मिकता अनवरत रखने का,
प्रयास हो, सदा हमारा
गुड़ी पड़वा ही हो नववर्ष हमारा
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