Rabindranath Tagore Poems In Hindi | रविंद्र नाथ टैगोर की प्रमुख रचनाएं
Rabindranath Tagore Poems In Hindi. रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि, लेखक, चिंतक, और समाज सुधारक थे। उन्होंने साहित्य, संगीत, और कला के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, नाटक, गीत और निबंधों में गहराई, संवेदनशीलता, और विचार की शक्ति प्रकट होती है। उनकी रचनाएँ समाज, प्रकृति, प्रेम, और धर्म के विभिन्न पहलुओं को छूने के साथ-साथ मानवता के आदर्शों को भी स्पष्ट करती हैं।
उनकी साहित्यिक यात्रा ने उन्हें नोबेल पुरस्कार सम्मान की ऊँचाइयों तक पहुंचाया और उन्हें विश्व साहित्य का प्रेरणास्त्रोत बनाया। उनका साहित्य अभी भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। रविंद्र नाथ टैगोर की प्रमुख रचनाएं हमेशा ही हमें उद्दीपन और प्रेरणा प्रदान करती हैं। चलिए पड़ते है रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं-
मन जहां डर से परे है
मन जहां डर से परे है
और सिर जहां ऊंचा है;
ज्ञान जहां मुक्त है
और जहां दुनिया को
संकीर्ण घरेलू दीवारों से
छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;
जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं,
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें
त्रुटि हीनता की तलाश में हैं,
जहां कारण की स्पष्ट धारा है
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के,
वीराने में अपना रास्ता खो नहीं चुकी है;
जहां मन हमेशा व्यापक होते विचार
और सक्रियता में,
तुम्हारे जरिए आगे चलता है
और आजादी के स्वर्ग में पहुंच जाता है,
ओ पिता परमेश्वर
मेरे देश को जागृत बनाओ।
विपदाओं से रक्षा करो
विपदाओं से रक्षा करो-
यह न मेरी प्रार्थना,
यह करो : विपद् में न हो भय।
दुख से व्यथित मन को मेरे
भले न हो सांत्वना,
यह करो : दुख पर मिले विजय।
मिल सके न यदि सहारा,
अपना बल न करे किनारा; –
क्षति ही क्षति मिले जगत् में
मिले केवल वंचना,
मन में जगत् में न लगे क्षय।
करो तुम्हीं त्राण मेरा-
यह न मेरी प्रार्थना,
तरण शक्ति रहे अनामय।
भार भले कम न करो,
भले न दो सांत्वना,
यह करो : ढो सकूँ भार-वय।
सिर नवाकर झेलूँगा सुख,
पहचानूँगा तुम्हारा मुख,
मगर दुख-निशा में सारा
जग करे जब वंचना,
यह करो : तुममें न हो संशय।
रोना बेकार है
रोना बेकार है
व्यर्थ है यह जलती अग्नि इच्छाओं की।
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है।
उदास आँखों से देखते आहिस्ता क़दमों से
दिन की विदाई के साथ
तारे उगे जा रहे हैं।
तुम्हारे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए
और अपनी भूखी आँखों में तुम्हारी आँखों को
कैद करते हुए,
ढूँढते और रोते हुए, कि कहाँ हो तुम,
कहाँ ओ, कहाँ हो…
तुम्हारे भीतर छिपी
वह अनंत अग्नि कहाँ है…
जैसे गहन संध्याकाश को अकेला तारा अपने अनंत
रहस्यों के साथ स्वर्ग का प्रकाश, तुम्हारी आँखों में
काँप रहा है,जिसके अंतर में गहराते रहस्यों के बीच
वहाँ एक आत्मस्तंभ चमक रहा है।
अवाक एकटक यह सब देखता हूँ मैं
अपने भरे हृदय के साथ
अनंत गहराई में छलांग लगा देता हूँ,
अपना सर्वस्व खोता हुआ।
गर्मी की रातों में
गर्मी की रातों में
जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद
तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी
आश्चर्य में डूबे मुझ पर
तुम्हारी उदास आंखें
निगाह रखेंगी
तुम्हारे घूंघट की छाया
मेरे हृदय पर टिकी रहेगी
गर्मी की रातों में पूरे चांद की तरह खिलती
तुम्हारी सांसें, उन्हें सुगंधित बनातीं
मरे स्वप्नों का पीछा करेंगी।
दिन पर दिन चले गए
दिन पर दिन चले गए पथ के किनारे
गीतों पर गीत अरे रहता पसारे
बीतती नहीं बेला सुर मैं उठाता
जोड़-जोड़ सपनों से उनको मैं गाता
दिन पर दिन जाते मैं बैठा एकाकी
जोह रहा बाट अभी मिलना तो बाकी
चाहो क्या रुकूँ नहीं रहूँ सदा गाता
करता जो प्रीत अरे व्यथा वही पाता।
मेरे प्यार की ख़ुशबू
मेरे प्यार की ख़ुशबू
वसंत के फूलों-सी
चारों ओर उठ रही है।
यह पुरानी धुनों की
याद दिला रही है
अचानक मेरे हृदय में
इच्छाओं की हरी पत्तियाँ
उगने लगी हैं
मेरा प्यार पास नहीं है
पर उसके स्पर्श मेरे केशों पर हैं
और उसकी आवाज़ अप्रैल के
सुहावने मैदानों से फुसफुसाती आ रही है।
उसकी एकटक निगाह यहाँ के
आसमानों से मुझे देख रही है
पर उसकी आँखें कहाँ हैं
उसके चुंबन हवाओं में हैं
पर उसके होंठ कहाँ हैं…
अगर प्यार में और कुछ नहीं
अगर प्यार में और कुछ नहीं
केवल दर्द है फिर क्यों है यह प्यार?
कैसी मूर्खता है यह
कि चूँकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
इसलिए उसके दिल पर
दावा बनता है,हमारा भी
रक्त में जलती इच्छाओं और आँखों में
चमकते पागलपन के साथ
मरूथलों का यह बारंबार चक्कर क्योंकर?
दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
वसंत की मीठी हवाएँ उसके लिए हैं;
फूल, पंक्षियों का कलरव सब कुछ
उसके लिए है
पर प्यार आता है
अपनी सर्वगासी छायाओं के साथ
पूरी दुनिया का सर्वनाश करता
जीवन और यौवन पर ग्रहण लगाता
फिर भी न जाने क्यों हमें
अस्तित्व को निगलते इस कोहरे की
तलाश रहती है?
धीरे चलो, धीरे बंधु
धीरे चलो, धीरे बंधु, लिए चलो धीरे।
मंदिर में, अपने विजन में।
पास में प्रकाश नहीं, पथ मुझको ज्ञात नहीं।
छाई है कालिमा घनेरी।।
चरणों की उठती ध्वनि आती बस तेरी
रात है अँधेरी।।
हवा सौंप जाती है वसनों की वह सुगंधि,
तेरी, बस तेरी।।
उसी ओर आऊँ मैं, तनिक से इशारे पर,
करूँ नहीं देरी!!
ये भी देखें-