Mahadevi Verma Poems In Hindi | Mahadevi Verma Ki Rachna

Mahadevi Verma Poems In Hindi: महादेवी वर्मा, हिंदी साहित्य की एक प्रमुख कवयित्री, निबंधकार और आधुनिक युग की छायावादी कविता की अग्रणी थीं। महादेवी वर्मा का व्यक्तित्व और कार्य आज भी हिंदी साहित्य में उन्हें एक अमर स्थान प्रदान करते हैं। Mahadevi Verma Ki Rachna न सिर्फ साहित्यिक उत्कृष्टता का परिचय देती हैं, बल्कि उनमें से प्रत्येक आज भी पाठकों के लिए नई दृष्टि और प्रेरणा का स्रोत है। महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।

Mahadevi Verma Poems In Hindi | Mahadevi Verma Ki Rachna

मैं अनंत पथ में लिखती

मै अनंत पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बाते
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें।

उड़उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक
अमिट रहेगी उसके अंचल-
में मेरी पीड़ा की रेख।

तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगी अनंत आँखें,
हो कर सीमाहीन, शून्य में
मँडरायेगी अभिलाषें।

वीणा होगी मूक बजाने-
वाला होगा अंतर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आ कर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण।

जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल।

मिटने का अधिकार

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना।

वे सूने से नयन, नहीं
जिनमें बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज, नही
जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती।

वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त ऋतुराज, नहीं
जिसने देखी जाने की राह।

ऐसा तेरा लोक, वेदना
नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद।

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरे मिटने का अधिकार।

कोयल

डाल हिलाकर आम बुलाता
तब कोयल आती है।

नहीं चाहिए इसको तबला,
नहीं चाहिए हारमोनियम,
छिप-छिपकर पत्तों में यह तो
गीत नया गाती है!

चिक्-चिक् मत करना रे निक्की,
भौंक न रोजी रानी,
गाना एक, सुना करते हैं
सब तो उसकी बानी।

आम लगेंगे इसीलिए यह
गाती मंगल गाना,
आम मिलेंगे सबको,
इसको नहीं एक भी खाना।

सबके सुख के लिए बेचारी
उड़-उड़कर आती है,
आम बुलाता है, तब कोयल
काम छोड़ आती है।

कहाँ रहेगी चिड़िया

कहाँ रहेगी चिड़िया?
आंधी आई जोर-शोर से,
डाली टूटी है झकोर से,
उड़ा घोंसला बेचारी का,
किससे अपनी बात कहेगी?
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?

घर में पेड़ कहाँ से लाएँ?
कैसे यह घोंसला बनाएँ?
कैसे फूटे अंडे जोड़ें?
किससे यह सब बात कहेगी,
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?

जो तुम आ जाते हो एक बार

जो तुम आ जाते हो एक बार
कितना करूणा संदेश
पथ में बिछ जाता है बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग राग राग राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते हो एक बार

हँसिया पल में कच्चे नयन
धुल से होठों से विषाद जैसा
जीवन में बस
लुट जाना चिर प्राप्त विराग
आग लगीं सर्वस्व युद्ध
जो तुम आ जाते हो एक बार

जब यह दीप थके तब आना

यह चंचल सपने भोले है,
दृग-जल पर पाले मैने,
मृदु पलकों पर तोले हैं,

दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!
जब यह दीप थके तब आना।

साधें करुणा-अंक ढली है,
सान्ध्य गगन-सी रंगमयी पर,
पावस की सजला बदली है,

विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!
जब यह दीप थके तब आना।

यह उड़ते क्षण पलक-भरे है,
सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है,

दे तारो के प्राण इन्ही से सूने श्वास बसाना!
जब यह दीप थके तब आना।

यह स्पन्दन है अंक-व्यथा के,
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की,
बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के,

कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना!
जब यह दीप थके तब आना।

लौ ने वर्ती को जाना है,
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने,
रज का अंचल पहचाना है,

चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना!
जब यह दीप थके तब आना।

स्वप्न से किसने जगाया?

मैं सुरभि हूं।
छोड कोमल फूल का घर,
ढूंढती हूं निर्झर।
पूछती हूं नभ धरा से क्या नहीं र्त्रतुराज आया?
स्वप्न से किसने जगाया?

मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत,
मैं अग-जग का प्यारा वसंत।
मेरी पगध्वनी सुन जग जागा,
कण-कण ने छवि मधुरस मांगा।

नव जीवन का संगीत बहा,
पुलकों से भर आया दिगंत।
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत,
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत।

धूप सा तन दीप सी मैं

उड़ रहा नित एक सौरभ
धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक
आलोक सांसों में पिघल मन,

अश्रु से गीला सृजन-पल
औ विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं।
धूप सा तन दीप सी मैं।

सघन घन का चल तुरंगम
चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ
पर भले तुम श्रान्त आये,

पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं।
धूप-सा तन दीप सी मैं।

तुममें प्रिय, फिर परिचय क्या

तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्कृति
भरती हूं तेरी चंच
और करूँ जग में संग्रहण क्या?

तेरह सहास अरूणबुध्द
परछाई रजनी विषादमय
वह जाग्रत स्वप्नदृष्टिमय,
खेल-खेल, थक-थक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?

तेर अष्ट विचुंबित प्याला
तेरी विस्मत मिश्रित हाला
तेर ही मानस मधुशाला
फिर कहो क्या मेरे साकी
दें होम मधुमय विषमय क्या?

चित्र तू मैं रेखा क्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम
तू मैं सीमा का भ्रम
काया-छाया में रहस्यमय
प्रेयसी प्रियतम का अभिनय किया क्या?

उत्तर

इस एक बूँद आँसू में,
चाहे साम्राज्य बहा दो,
वरदानों की वर्षा से,
यह सूनापन बिखरा दो।

इच्छा‌ओं की कम्पन से,
सोता एकान्त जगा दो,
आशा की मुस्काहट पर,
मेरा नैराश्य लुटा दो ।

चाहे जर्जर तारों में,
अपना मानस उलझा दो,
इन पलकों के प्यालो में,
सुख का आसव छलका दो।

मेरे बिखरे प्राणों में,
सारी करुणा ढुलका दो,
मेरी छोटी सीमा में,
अपना अस्तित्व मिटा दो।

पर शेष नहीं होगी यह,
मेरे प्राणों की क्रीड़ा,
तुमको पीड़ा में ढूँढा,
तुम में ढूँढूँगी पीड़ा।

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