10 हिंदी की बेहतरीन कविताएं | हिंदी कविताएं

10 हिंदी की बेहतरीन कविताएं | हिंदी कविताएं

हिंदी की बेहतरीन कविताएं | हिंदी कविताएं

प्रकृति संदेश – सोहनलाल द्विवेदी

पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।

समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ उठ गिर गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी मीठी मृदुल उमंग!

पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार!

काश ज़िंदगी एक किताब होती

काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा?
क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा?
कब थोड़ी खुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा?
काश जिदंगी सचमुच किताब होती

फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
जिन्होने मुझे रुलाया है..
जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है…
खोया और कितना पाया है?
हिसाब तो लगा पाता कितना
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,

वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता..
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता,
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती।

समय – अभय शर्मा

समय तुम्हारे साथ-साथ चलता हूं मैं,
तुम रुकते नहीं तुम थकते नहीं,
तुम कहां कभी भी थमते नहीं,

क्या बात तुम्हारी है न्यारी,
पीछे भी कभी तुम मुड़ते नहीं,

ना कोई बांध सका,
सब मरज़ो की तुम एक दवा।

जो चाल तुम्हारी समझ गया,
धरती पर उसने है राज किया,

हो समय तुम बड़े बलशाली,
वीरों को देते खुशहाली,

सब आस निराश के ज्ञाता तुम,
सुख और दुख के दाता तुम,

तुमसे ही जग में है वैभव,
हो अभय तुम ही तुम अमृत,

हे समय तुम्हें हम करें नमन,
पीड़ा जग की अब करो हरण,

यह समय तुम्हारे साथ हैं हम।

मंजिल तुझे पाना है – राजीव राउत

सब आएंगे तुम्हे रोकने,
तुम्हे पथ पे ना ठहर जाना है।
मंजिल तुम्हे पाना है,
मंजिल तुम्हे पाना है…

नजर न तुम्हे झुकाना है,
बस पथ पे चलते जाना है
मंजिल तुम्हे पाना है,
मंजिल तुम्हे पाना है…

सफल ना तुम हो पाओगे,
अगर मंजिल को ना पा पाओगे,
सफल ना तुम हो पाओगे,
अगर मंजिल को ना पा पाओगे,

पथ पे कांटे आएंगे,
तुम्हे फिर भी चलते जाना है,
तुम्हे फिर भी चलते जाना है।
मंजिल तुम्हे पाना है,
मंजिल तुम्हे पाना है…

सफल तुम खुद हो जाओगे,
अगर मंजिल को पाओगे।
तुम्हे पथ पे ना ठहर जाना है।
मंजिल तुम्हे पाना है,
मंजिल तुम्हे पाना है…

बचपन

वो बचपन भी कितना सुहाना था,
जिसका रोज एक नया फसाना था।

कभी पापा के कंधो का,
तो कभी मां के आँचल का सहारा था।

कभी बेफिक्रे मिट्टी के खेल का,
तो कभी दोस्तो का साथ मस्ताना था।

कभी नंगे पाँव वो दोड का,
तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था।

कभी बिन आँसू रोने का,
तो कभी बात मनवाने का बहाना था।

सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे,
ना कुछ छिपाना और दिल मे जो आए बताना था।

मकान – कैफ आजमी

आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी।
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी।

ये जमीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटी शाखों से उतारे हम ने।
इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर
उन दिनों की जो गुफाओ मे गुजारे हम ने।

हाथ ढलते गये सांचे में तो थकते कैसे
नक्श के बाद नये नक्श निखारे हम ने।
कि ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंद,
बाम-ओ-दर और जरा, और सँवारा हम ने।

आँधियाँ तोड़ लिया करती थी शामों की लौं
जड़ दिये इस लिये बिजली के सितारे हम ने।

बन गया कसर तो पहरे पे कोई बैठ गया
सो रहे खाक पे हम शोरिश-ऐ-तामिर लिये।
अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ऐ-पेयाम की थकान
बंद आंखों में इसी कसर की तसवीर लिये।

दिन पिघलाता है इसी तरह सारों पर अब तक
रात आंखों में खटकतीं है स्याह तीर लिये।

आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी।
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी।

हिंदी भाषा – भारतेंदु हरिश्चंद्र

दो वर्तमान का सत्य सरल,
सुंदर भविष्य के सपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

यह दुखड़ों का जंजाल नहीं,
लाखों मुखड़ों की भाषा है
थी अमर शहीदों की आशा,
अब जिंदों की अभिलाषा है

मेवा है इसकी सेवा में,
नयनों को कभी न झंपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो।

नीला रंग – अंकुर मिश्र

अगर कभी मैं खोज पाया नीला रंग
तो वह आसमानी छतों और सागर की
दरियों में नहीं होगा

होगा वह क़लम से लहूलुहान काग़ज़
की रेखाओं में

अगर यह भी न हुआ,
मैं खोज निकालूँगा उसे अंतरात्मा की
परछाइयों में।

मैंने नील से कपड़े धोती
माँ के हाथों में नीला रंग देखा है।

मैंने देखी है नीली पतंगे, नीले पहाड़,
नीले जंगल,
और नीला कमल, नीला रक्त भी।

काश! यही नीला रंग होता मेरी
ज़िंदगी का।

रिश्ता – शीतल दुबे

जरूरी नहीं हर रिश्ता प्यार का ही हो
कुछ रिश्ते अपनेपन और एहसास के भी होते हैं।

जरूरी नहीं हर रिश्ते में जीत या हार हो
कुछ रिश्ते समर्पण के भी होते हैं।

जरूरी नहीं हर रिश्ते में कुछ पाना या खोना ही हो
कुछ रिश्ते त्याग के भी होते हैं।

जरुरी नहीं हर रिश्ता पास रहकर ही निभाना हो
कुछ रिश्ते दूर रहकर भी निभाने होते हैं।

जरूरी नहीं हर रिश्ते का आधार आपस में एक दूसरे से कुछ लेना देना ही हो
कुछ रिश्ते बिना स्वार्थ, बिना लेन देन के भी होते हैं

हर रिश्ते की अपनी खूबसूरती और जज्बात है
बस ये जानकर ही उन्हें निभाने होते हैं।

जानवरो पर संकट – वी. सिंह

जंगल काटके इंसान अगर
वहां सीमेंट का शहर बसा देगा,
तो उस जंगल के जानवर
जंगल छोड कहाँ जायेगा।

ओर अगर वो खाने की तलाश मे
कभी शहर मे आ जायेगा,
तो ये निर्दयी इंसान
उसे मार गिराएगा।

लेकिन फिर भी जंगलो को
काटना, जलाना नहीं छोड़ेगा
जानवरो के लिए तो इंसान
हैवान है बन गया,

अपने विकास के चक्कर मे
अनेक जनवरो की प्रजाति
खत्म ही कर गया।

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