![]() |
स्वामी विवेकानंद पर कविता – आओ सूरज को दिया दिखाएं |
आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं |
Poem on Swami Vivekananda in Hindi
त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण, कलयुग में कबीर और विवेकानंद
महापुरुष जन्म लेते हैं सदियों में, सदियों तक रहती उनकी सुगंध
19वीं सदी ऋणी स्वामी जी की, जिनने अध्यात्म का मिटाया अंतर्द्वंद
भारतीय वेदांत दुनिया में फैला कर, धर्म पताका की बुलंद
भिक्षुक और सपेरों का कलंक मिटाया, स्वाभिमान से कराया अनुबंध
40 वर्ष की छोटी सी उम्र में, सदियों से फेले अंधियार मिटाएं
आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं
मां धार्मिक ग्रहणी थी, पिता थोड़े विलासी और नास्तिक वकील
दादा साधु हो चुके थे, दुविधा ग्रस्त थी सभी धार्मिक दलील
ईश्वर को जाने या माने, संशय की चुभी हुई थी कील
पिता की असमय मृत्यु और आपकी नास्तिकता से, परिवार ने की परेशानी फील
ब्रह्म समाज के संपर्क में आये, पर ज्ञान की जल ना सकी कंदील
आखिर रामकृष्ण की संगत पाकर, कुछ कुछ होने लगे सुशील
उनके ईश्वर देखने की अप्रतिम घोषणा से, विश्वास के सारे दीप जगमगाए
आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं
30 वर्ष की अल्पायु में ही, हुए परमहंस के उत्तराधिकारी
नवजागरण के व्याख्यानों पर, जुड़ने लगी भीड़ भारी
धर्म संसद होनी थी शिकागो में, दुनिया कर रही थी तैयारी
गुलाम था भारत अब तक, संभव नहीं थी भागीदारी
खेतड़ी महाराज ने खर्च उठाया, भेजने की ली जिम्मेदारी
समय मिला दो मिनट बमुश्किल, विषय मिला शून्य उपहास कारी
बहनों भाइयों के प्रथम संबोधन से ही, तालियों की गूंजी किलकारी
चौबीस घंटे अनवरत बोले, समय भूल गए अमेरिकी नर नारी
कहा जैसे नदी मिलती समुद्र से, कई कई रास्तों की करके सवारी
सभी धर्म पहुंचाते ईश्वर तक, पद्धति पृथक पर नियति एक हमारी
किंतु सनातन धर्म की श्रेष्ठता को, प्रमाणिकता से बताया मंगलकारी
दुनिया ने माना लोहा भारत का, 18 ही दिन अंतिम वक्ता की रही जवाबदारी
चीन, जापान से यूरोप के कई देशों तक, धर्म पताका फहरा कर आए
आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं
कृष्ण के गीता ज्ञान से – कविता
उठो, जागो और रुको मत, सदी का रहा यह महान विचार
युवाओं के लिए प्रेरणा था यह नारा, आज भी सर्वाधिक प्रेरणास्पद उदगार
100 युवा सन्यासियों की चाह रखी समाज से, समाज का कर सके जो जीर्णोद्धार
दीन दुखियों को ही ईश्वर माना, कुरीतियों पर सदा किया प्रहार
महिला शिक्षा के रहे हिमायती, पर युवाओं के लिए तो ईश्वर अवतार
आज के युवा सीखें उनसे, जो डालर की खातिर छोड़ देते हैं घर-परिवार
हावर्ड और कोलंबिया के प्रतिष्ठित आफर भी, स्वामी जी ने नहीं किए स्वीकार
उनसा ही पुत्र प्राप्ति की इच्छुक महिला से, स्वयं ही पुत्र बन मिसाल रखी शानदार
आधुनिक भारत का निर्माता माना सुभाष ने, जिनने संस्कृति को दिया वैश्विक विस्तार
भारत जानने के लिए विवेकानंद पढ़ने का, टैगोर ने किया सदा प्रचार
गांधी, नेहरू, पटेल से मोदी तक ने, प्रेरणा पाई उनसे बार बार, हर बार
अन्ना हजारे के सिपाही से संत बनने का कारण, हम सब पढ़ते, सुनते आए
आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं
अंत में बात ऐसे विद्रोही विचारों की, जिससे सही गलत की कराई पहचान
गीता की अपेक्षा व्यायाम का युवाओं से, किया अप्रचलित, अपरंपरागत आव्हान
चार घंटे गीता की तुलना में, दो घंटे हल चलाने का दिया क्रांतिकारी बयान
यज्ञों में घी जलाना पाप तो माना ही, माना भी यह अपराध समान
मंदिर के देवी देवताओं से ज्यादा जरूरी, माने देश के 33 करोड़ इंसान
भूखे, नंगे और कुपोषितों का, 33 करोड़ देवों से ऊपर रखा स्थान
कट्टर पुरोहित वाद के विरुद्ध, स्वामी जी का रहा सदा पेगाम
याचक नहीं दाता बने, बेचे नहीं आत्मसम्मान
एक गौ रक्षक आये सहयोग मांगने, अकाल पीड़ित था हिंदुस्तान
मना किया स्वामी जी ने कह कर, कि गाय से ज्यादा जरूरी है इंसान
गौ रक्षक बोले गाय हमारी माता है, यह नहीं सामान्य पशु समान
बोले स्वामी जी, विलक्षणता से लगता भी है, आप नहीं आदमी की संतान
अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जब, पाखन्डों पर आपने लगाई लगाम
सच्चे थे समाज सुधारक देश के, जिनने बढ़ाया भारत का मान
कबीर के बाद विवेकानंद ही हैं, जो रूढिग्रस्त समाज में जान लाये
हम पढ़े साहित्य स्वामी जी का, पाठ्यक्रमों में भी यह स्थान पाये
संभव है कायाकल्प देश का, अगर युवाओं में उनका चिन्तन आए
आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं
Good