Poem on Krishna in Hindi
सतयुग, द्वापर, त्रेता बीता,
चल रहा है कलयुग का काल
शुरुआत ही है कलिकाल की,
चलना और हजारों साल
घर-घर कंश है दर-दर दुर्योधन,
एक नही पर गिरधर गोपाल
दया, धर्म और सत्य अहिंसा,
किताबों तक ही हमने रखे संभाल
स्वार्थ सिद्धि ही लक्ष्य सभी का,
मंदिरों से संसद तक है यहीं हाल
जेलो में बंद जितने अपराधी,
उससे ज्यादा है फरारी
पाप बहुत है हरो मुरारी
जन्मे आप तो भयावह रात थी,
बिजली, बारिश और गहन अंधकार
मथुरा के राजा दुष्ट कंस का,
चरम पर था अत्याचार
द्वापर का अंत निकट था,
कलयुग सहन को होना था तैयार
युग पुरुष की आवश्यकता थी,
आवश्यक था विष्णु का एक और अवतार
शुभ आगमन से धरा पर आपके,
कारागार के खुल गए द्वार
ज्यादा जरूरत है आज कृष्ण की,
कंसो की बढ़ गयी संख्या भारी
पाप बहुत है हरो मुरारी
Poem on Krishna in Hindi
कृष्ण कठिन है, यदि हम समझना चाहें
पर सरल बहुत है, यदि व्यवहार में लाये
आदर्श स्थापित करने समाज में,
चर्चित है उनकी लीलायें
दूध, दही का प्रचुर प्रयोग,
गौ वंश का महत्व बतायें
बांसुरी हर घड़ी होंटो पर,
रचनात्मकता से प्रीत जगाये
विश्वविख्यात है सुदामा से मित्रता,
कैसे मुठ्ठी भर चने का कर्ज चुकाये
अर्जुन को दिया उपदेश गीता का,
निष्काम कर्म का पाठ पढ़ाये
दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक यह,
सरल जीवन की राह दिखाये
ब्रह्मांड दिखाकर अर्जुन को मुख में,
योग की दिखाई अनंत क्षमतायें
एक मात्र है महा मानव धरा पर,
अहं ब्रह्मास्मि जो कह पाये
अधर्म पर धर्म की विजय की खातिर,
प्रयुक्त की समस्त सोलह कलायें
जरा संध युद्ध से बतलाया,
कभी-कभी रण छोड़ भी जायें
दुनिया चमत्कृत महाभारत युद्ध से,
निहत्थे से सारी सेना हारी,
पाप बहुत है हरो मुरारी
जन्माष्टमी हम मनाते जन्म से,
बन गयी मात्र औपचारिकता
झाँकी लगाना, मंदिर सजाना,
या मटकी फोड़ प्रतियोगिता
सीमित कर दिया असीम कृष्ण को,
भुला दी हमने वास्तविकता
गीता में उद्देश्य निहित था,
कर्म की प्रतिपादिता हो महत्ता
भक्ति, ज्ञान और कर्म योग में,
सबसे ऊपर कर्म की सत्ता
कर्म पर ही है भाग्य निर्भर,
जीवन इससे ही बनता और बिगड़ता
हम सुधारे अपने कर्मों को,
जन्माष्टमी की यही सच्ची सार्थकता
व्यसन मुक्त हों, तनाव मुक्त हों,
शान्ति युक्त हों, कर्म उपयुक्त हों
अवगुणों से सद्गुणो तक की यात्रा,
अनवरत हमारी रहे जारी
पाप बहुत है हरो मुरारी
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