सच्ची दोस्ती पर कविता – मित्र बिना सब निर्धन
सच्ची दोस्ती पर कविता-
मित्रता का रिश्ता ही है मात्र ऐसा
जिसमें ना बंधन जन्म का ना बंधन पैसा
दूध मुंहे बच्चों से बुजुर्गों तक
हर एक को चाहिए कोई अपने जैसा
रंग, जाति या भले धर्म अलग हो
पर सोच दोनों का हो एक जैसा
आ जाती है चेहरे पर रौनक
जब परम मित्र का होता आगमन
जितना चाहे हम कमा लें धन
पर मित्र बिना सब निर्धन
मित्रता में औपचारिकता का
होता नहीं कहीं स्थान
आईना दिखाता सच्चा मित्र
अपनी कमियों का कराता ज्ञान
मुंह पर गाली पीछे प्रशंसा
सच्चे मित्र की है पहचान
काम आए बुरे वक्त में
बताए नहीं कभी एहसान
सो मित्रों के बराबर ऐसा
एक मित्र हो भाई समान
हम भी बने मित्र किसी के
जिस पर लुटा सकें अपना तन, मन, धन
जितना चाहे हम कमा लें धन
पर मित्र बिना सब निर्धन
कृष्ण सुदामा की दोस्ती
दुनिया में है एक मिसाल
कीमत नहीं बराबरी की ज्यादा
भले एक राजा हो, एक कंगाल
कर्ण-दुर्योधन की मित्रता को
डिगा ना सकी कृष्ण की चाल
राम-सुग्रीव की मित्रता से
गौरवान्वित है त्रेता काल
मोदी जी की मित्रता से
कई राष्ट्र प्रमुख हुए निहाल
भारत चाहता मित्रता सभी से
पूरी दुनिया हो खुशहाल
दुनिया भी यदि यही सोचे तो
युद्ध का कहां बचे सवाल
मित्रता दिवस पर बड़े मित्रता
दुश्मनों की हो संख्या कम
जितना चाहे हम कमा लें धन
पर मित्र बिना सब निर्धन
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