Guru Purnima: इस कविता के माध्यम से गुरु की महिमा, उनके ऐतिहासिक योगदान और आधुनिक भारत में उनकी भूमिका को दर्शाया गया है। ‘गुरु साक्षात परब्रह्म समान‘ की भावना को समर्पित यह रचना शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रनिर्माण के गहरे संबंध को उजागर करती है।

गुरु साक्षात परब्रह्म समान
धर्म शास्त्र, स्मृति और वेद पुराण
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और कृष्ण भगवान
तुलसी, वाल्मीकि, कबीर, रसखान
सभी बोलते बस एक जुबान
गुरु साक्षात परब्रह्म समान
गुरुजनों पर निर्भर संस्कृति,
गुरु बढ़ाते देश का मान
पादरी चलाते देश कहीं तो,
कहीं मुल्ला हाथ में रखते कमान
जैसी जिसकी शिक्षा वैसा,
देश उनका उतना बनता महान
कन्फ्यूशियस, कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं से,
चीन रूस ने पाया सम्मान
सुकरात, अरस्तु हटाकर देखें,
तो बचता नहीं कहीं यूनान
गुरु प्रदत्त मंत्र जाप का,
हम गुरु पूर्णिमा पर करते गान
पर गुरुजनों के मार्गदर्शन बिन,
पश्चिम मानसिक रूप से परेशान
गुरु साक्षात परब्रह्म समान
ब्रह्मा, विष्णु, महेश के सदृश,
गुरुजनों को हम करते नमन
गुरुओं के भी गुरु माने जाते,
भगवान कृष्ण, और वेद व्यास द्वेपायन
दैत्यों ने शुक्राचार्य और देवों ने बृहस्पति के दम पर,
पूर्ण किए अपने प्रयोजन
चरवाहे चंद्रगुप्त को अपनी शिक्षा से,
चाणक्य ने बना दिया मगध का राजन
वशिष्ठ, विश्वामित्र, सांदीपनि की शिक्षाओं ने,
राम और कृष्ण को बनाया भगवान
गुरु साक्षात परब्रह्म समान
विकृति आई भारत में भी,
भौतिकता का बड़ा प्रसार
गुरुकुल की सनातन परंपरा का,
हमने कर दिया बहिष्कार
शिक्षक ही है अब गुरु समाज के,
बच्चों के भविष्य का उनपर ही भार
राष्ट्रवाद की नयी शिक्षा नीति से,
संभव है फिर हो सुधार
उद्देश्य हो शिक्षा व्यवस्था का,
अध्यात्म-विज्ञान का एकाकार
अच्छे अधिकारी बने न बने बच्चे,
पर बन पाएं वे अच्छे इंसान
गुरुजनों का करके सम्मान,
फिर बनाएं हम देश महान
गुरु साक्षात् परब्रह्म समान