सर्दी पर कविता – सर्दी हो गई बेदर्दी
सर्दी पर कविता: ठिठुरती ठंड के अनुभवों और सर्दियों में स्वस्थ रहने के उपायों पर आधारित यह मनोरंजक कविता आपको सर्दी के मौसम को नए दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित करती है। दैनिक जीवन की मुश्किलों और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत करती यह रचना सर्दी के अनुभवों को जीवंत बनाती है। नीचे आप इस “सर्दी पर कविता” को पढ़ सकते हैं-
सर्दी हो गई बेदर्दी
ना दिखाएं जवांमर्दी
दो के पहाड़े जैसी सीधी
आज बन गई 29 का पहाड़ा
मुश्किल निकलना घर से बाहर
हाड़ कपांता सुबह का जाडा
गर्मी को हम कोस रहे थे
जल्दी बारिश की सोच रहे थे
पर जब से आई सर्दी माई
टोपे मफलर से शक्ल छुपाई
अब तो नहाने की भी हमने छुट्टी कर दी
सर्दी हो गई बेदर्दी
ना दिखाएं जवां मर्दी
पढ़ना लिखना छूट गया है
बाइक से संपर्क टूट गया है
धूप से जी भरता ही नहीं
मानो सूरज रूठ गया है
जल्दी सोना देर से उठना
बिगड़ गया सारा दैनिक क्रम
योग व्यायाम का समय न बचा
बंद हो गया पैदल चालन
खानपान की अधिकता से
कोलेस्ट्रॉल बन रहा जान का दुश्मन
कम ही ना हो रही इसकी गुंडागर्दी
सर्दी हो गई बेदर्दी
ना दिखाएं जवां मर्दी
घी, गुड़, तिल्ली और मूंगफली का
खूब करें हम प्रयोग
अदरक, आवंला, लहसुन सहित
ड्राई फ्रूट्स का भी हो उपयोग
इम्यूनिटी बढ़ाना हो लक्ष्य हमारा
हृदय को बनाए स्वस्थ निरोग
सक्रिय रहे ज्यादा से ज्यादा
कर कर एक्सरसाइज और योग
व्यस्त रहे मस्त रहें
बच्चों संग करें गर्दी
सर्दी हो गई बेदर्दी
ना दिखाएं जवां मर्दी
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