भारत देश पर कविता
ये देश नही बनता केवल खेत-खलिहानों से
पहाड़ो से या मैदानों से
पठारों या रेगिस्तानों से
ये देश बनता है….
यहाँ बसते इंसानों से।
ये नहीं मिलता केवल पतझाड़ो या बहारों में
गर्मी या बौछारों में
ये नही केवल मौसमों में
या रंग-बिरंगे त्यौहारों में
ये देश मिलता है….
प्रगत विचारों में, ठहरे संस्कारो में।
यही है राम की, कृष्ण की जन्मभूमि
यही है संतों की पावन कर्मभूमि
हमारी बुनियाद में….
तुलसी के दोहे, कबीर की वाणी है
हवाओं में अज़ान, गूंजती गुरबानी है।
ये देश बनता है विधान बने सत्य वचनों से
वेदों से, पुराणों से
ये देश बनता है
यहाँ बसते इंसानों से।
चाहे बांटो हमें जाति या धर्म में
भाषा, प्रांत या किसी वर्ण में
जब देश पुकारता है
वही बंटा हर हिस्सा फिर एक हो जाता है
इतिहास हमारा प्रमाण है
विजय ही हमारे हर संघर्ष का परिणाम है।
मुश्किलों में हम और निखरते हैं
हर स्वार्थ से पहले देश रखते है
देश बनता है….
ऋजु(सच्चा) प्रेणता(रचियता) के प्रयत्नों से
देश बनता है अविरत बलिदानों से
देश बनता है…..
यहाँ बसते इंसानों से।
हम ही से है देश हमारा
हम ही से ये महान बनेगा
फिर वह स्वेद(पसीना) हो श्रमिकों का या किसानों का
या फिर खून हो वीर जवानों का
इस मिट्टी का रंग….
तय हमारा ही ईमान करेगा।