अनन्त युगों से चल रही दुनिया, अनन्त युगों तक चलना है अनन्त जीवन पाना है, अनन्त रूपो में ढलना है अनन्त क्षितिज है, अनन्त सूर्य है, अनन्त हमारी अभिलाषायें अनन्त है विस्तार ब्रह्मांड का, अनन्त हमारी दसों दिशायें किंतु क्षणिक है जीवन हमारा, इसी में गिरना, उठना और संभलना है अनन्त युगों से चल रही दुनिया, अनन्त युगों तक चलना है
75 वर्ष हम मुश्किल से जीते, एक तिहाई सोने में बीते कुछ बरस बचपन में जाते, कुछ वृद्धावस्था में, जाग्रत नही बाकी दिनों में भी, यह भी रहते रीते के रीते पद, पैसा और प्रतिष्ठा की हवस में, यन्त्रवत हम जीवन जीते यह समय भी शायद ज्यादा है, तभी झगड़े करते, दारू पीते इस व्यर्थ समय से समय निकालकर, जीवन हमें बदलना है अनन्त युगों से चल रही दुनिया, अनन्त युगों तक चलना है
पंडित कहते भजन करो, मुल्ला नमाज पढ़ने को कहता है परिवार चाहता नाम कमाओ, समाज पैसे को प्रतिष्ठा देता है आत्मा का प्रयास परमात्म प्राप्ति का, मन चंचलता में बहता है मन मस्तिष्क को पढ़ना है मुश्किल, पर हल अन्तर में कही रहता है इस अन्तरशक्ति को शक्ति देने, अध्यात्म से राह निकलना है अनन्त युगों से चल रही दुनिया, अनन्त युगों तक चलना है
क्यों आये हम दुनिया में, दुनिया मे है सारा संसार पंडित, पोप से महावीर, मुल्लाओं तक, सबके अपने अलग विचार विज्ञान प्रयास रत है निरन्तर, पर सीमित है इसका भी विस्तार क्या करें या क्या न करें में, गीता ही दिखता एक आधार कर्म ज्ञान से आगे बढ़कर, वेद उपनिषदों का है इससे सार कर्म करो फल की चिंता नही से ही, दुविधा से हम पा सकते पार अन्तर आत्मा की आवाज सुने हम, शुभ ही शुभ के लिये अब ढलना है अनन्त युगों से चल रही दुनिया, अनन्त युगों तक चलना है
जीवन का उद्देश्य कविता
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