राम पर पंक्तियां – Ram Par Kavita
राम पर पंक्तियां
रमा है सबमें राम
रमा है सबमें राम,
वही सलोना श्याम।
जितने अधिक रहें अच्छा है
अपने छोटे छन्द,
अतुलित जो है उधर अलौकिक
उसका वह आनन्द
लूट लो, न लो विराम;
रमा है सबमें राम।
अपनी स्वर-विभिन्नता का है
क्या ही रम्य रहस्य;
बढ़े राग-रञ्जकता उसकी
पाकर सामञ्जस्य।
गूँजने दो भवधान,
रमा है सबमें राम।
बढ़े विचित्र वर्ण वे अपने
गढ़ें स्वतन्त्र चरित्र;
बने एक उन सबसे उसकी
सुन्दरता का चित्र।
रहे जो लोक ललाम,
रमा है सबमें राम।
अयुत दलों से युक्त क्यों न हों
निज मानस के फूल;
उन्हें बिखरना वहाँ जहाँ है
उस प्रिय की पद-धूल।
मिले बहुविधि विश्राम,
रमा है सबमें राम।
अपनी अगणित धाराओं के
अगणित हों विस्तार;
उसके सागर का भी तो है
बढ़ो बस आठों याम,
रमा है सबमें राम।
हुआ एक होकर अनेक वह
हम अनेक से एक,
वह हम बना और हम वह यों
अहा ! अपूर्व विवेक।
भेद का रहे न नाम,
रमा है सबमें राम।
∼ मैथिलीशरण गुप्त
ये सुने –
कहाँ हैं राम
पहली दीवाली
मनाई थी जनता ने
रामराज्य की!
उस प्रजा के लिए
कितनी थी आसान
भलाई और बुराई
की पहचान।
अच्छा उन दिनों
होता था-
बस अच्छा
और बुरा
पूरी तरह से बुरा।
मिलावट
राम और रावण में
होती नहीं थी
उन दिनों।
रावण रावण रहता
और राम राम।
बस एक बात थी आम
कि विजय होगी
अच्छाई की बुराई पर
राम की रावण पर।
द्वापर में भी कंस
ने कभी कृष्ण
का नहीं किया धारण
रूप
बनाए रखा अपना
स्वरूप।
समस्या हमारी है
हमारे युग के
धर्म और अधर्म
हुए हैं कुछ ऐसे गड़मड़
कि चेहरे दोनो के
लगते हैं एक से।
दीवाली मनाने के लिए
आवश्यक है
रावण पर जीत राम की
यहां हैं बुश
और हैं सद्दाम
दोनों के चेहरे एक
कहां हैं राम ?
∼ तेजेन्द्र शर्मा
हे राम !
तुम्हारे नाम की हो रही है लूट
हे राम !
तुम्हारे नाम को जप रहा है झूठ
हे राम !
तुम्हारे नाम से भर रहे हैं पेट
हे राम !
तुम्हारे नाम पर ठग रहे हैं सेठ
हे राम !
तुम्हारे नाम पर सजे हुए हैं बाज़ार
हे राम !
तुम्हारे नाम पर जम गया है ब्योपार
हे राम !
तुम्हारे नाम पर डाकू भी सन्त
हे राम !
तुम्हारे नाम की महिमा है अनन्त
हे राम !
∼ रामकुमार कृषक
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