एक अकेले तुलसीदास – तुलसीदास जी पर कविता |
Tulsidas ki Kavita
ना कोई तुलना, ना कोई टक्कर, उन पर निर्भर सारा इतिहास
कवि कहें, संत कहें या मसीहा समाज के, सीमित करने का न करें प्रयास
सम्पूर्ण मानव थे इस धरा पर, देवत्व का सा होता आभाष
भारत ही नही पूरी दुनिया में, रामत्व को दिया प्रखर प्रकाश
ना कोई तुलना ना कोई टक्कर एक अकेले तुलसीदास
देववाणी में थी रामायण, समझना जरा था मुश्किल काम
अकबर का दिने इलाही हिंदुत्व को, दे रहा था बड़ा नुकसान
धर्म निरपेक्षता की कृत्रिम छबि से, धोखा खा रही थी हिन्दू अवाम
अल्लाह हो अकबर की अनिवार्यता से, परेशान थे चिंतक और बुद्धिमान
अनपढ़ अकबर की कुटिल बुद्धिमत्ता से, सत्ता फेला रही थी इस्लाम
समाज की एकता जरूरी थी, जरूरी था बचाना आत्म सम्मान
ऐसे में रामचरित्र लिखकर अवधि में, राम से बढ़ा दिया राम का नाम
राम के चरित्र, सीता के सतीत्व ने, रिक्तता पर लगाया पूर्ण विराम
और भी लिखे ग्रंथ बहुत से, हिंदुत्व को दिलाया नया विश्वास
ना कोई तुलना ना कोई टक्कर एक अकेले तुलसीदास
महानायक थे राम तुलसी के, दुनिया ने माना तारण हार
दो अक्षर का शब्द छोटा सा, जीवन मृत्यु का बना आधार
एक अंश भी आ जाये जीवन मे, लोक परलोक में हो उद्धार
असम्भव था करना चरित्र चित्रण, राम कृपा से ही हुआ चमत्कार
मात्रा मात्र का भेद नही है, दोहा, चोपाई, छंद, सोरठा में समान मात्राये, समान आकार
जैसा जहाँ रहा प्रयोजन, शब्दों को वैसा दिया विस्तार
रघुवीर, रघुनाथ, रघुराज, रघुनंदन को देखें, शब्दों में ही निहित है सारा सार
कहा मैक्समूलर ने यदि समझ सके दुनिया हिंदी तो, सारे नोबेल इस ग्रंथ पर निछार
कवियों के महाकवि आप, ज्ञानियों के ज्ञान प्रकाश
ना कोई तुलना ना कोई टक्कर ऐसे एक अकेले तुलसीदास
महार्षि वाल्मीकि से वेद पुराणों तक ने, भगवान राम की महिमा को गाया
जन बोली में चित्रण कर तुलसी ने, जनमानस की चेतना को जगाया
शबरी, निषाद और जटायु की निकटता राम से, ऊँच नीच का भेद मिटाया
क्या होता है महत्व वचन का, राज तजा कर यह बतलाया
भ्रातृ प्रेम और मातृपित्र भक्ति के आदर्शों को, संस्कारो में हमने अपनाया
प्रिय पत्नि को त्याग समाज को, राजधर्म का मर्म सिखाया
छोटो से बड़ो का व्यवहार दिखाने, राम से ज्यादा हनुमान को पुजवाया
दुनिया के महानतम आदर्श राम को, घर-घर पहुँचाने के रहे प्रयास
तुलसी जयंती के पावन पर्व पर, राम हमारे जीवन मे भी दे प्रकाश
उपकृत रहेंगे हम महाकवि के, जब तक हमारी आखरी श्वांस
ना कोई तुलना ना कोई टक्कर एक अकेले तुलसीदास