शिक्षक पर कविता
शिक्षकों पर निर्भर है दुनिया,
शिक्षक बढ़ाते देश का मान
भौतिकता पर नैतिकता का अंकुश,
शिक्षक ही रखते महावत समान
पादरी चलाते देश कहीं तो,
कहीं मूल्ला रखते हाथ में कमान
जैसी जिसकी शिक्षा वेसा,
देश उनका उतना बनता महान
कन्फ्यूशियस और कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं से,
चीन रूस ने पाया सम्मान
सुकरात, अरस्तु हटाकर देखें तो,
बचता नहीं कहीं यूनान
ज्यादा प्रतिष्ठा है पश्चिम में शिक्षक की,
तभी तो विकसित है अमरीका,
ब्रिटेन हो या फ्रांस जापान
शिक्षकों का करके सम्मान,
बढ़ाएं अपना खुद का मान
सम्मान होता है दूसरे देशों में,
पर हमारे यहां होता है पूजन
ब्रह्मा, विष्णु, महेश के सदृश मानकर,
गुरुओं को करते हम नमन
गुरुओं के भी गुरु माने जाते हैं,
भगवान कृष्ण और वेद व्यास द्वैपायन
देत्यो ने शुक्राचार्य और देवो ने बृहस्पति के दम पर,
पूर्ण किऐ अपने प्रयोजन
अखंड भारत के सूत्रधार चाणक्य से,
खौफ खाते थे सिकंदर सहित सारे यमन
कबीर नानक और मीरा से विवेकानंद तक,
सभी के निर्माता रहे उनके गुरु जन
आधुनिक काल की बात करें तो,
शिक्षकों के वर्तमान आदर्श
सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन
लंबी रही है श्रंखला शिक्षक गुरुओं की,
असंभव गिनाना उन सब के नाम
शिक्षकों का करके सम्मान,
बढ़ाएं अपना खुद का मान
शिक्षक पर कविता
कहते हैं शिक्षक सभी आदर्श होते हैं
यदि एक भी शब्द उनने पढ़ाया है
जरा भी हटाया दूर अंधेरा,
तो प्रकाश नजदीक लाया है
शिक्षकों में रहे सदा संस्कार उत्थान के,
मैकाले ने सिर्फ थोड़ा उन्हें दबाया है
अर्थ सदा ही रहा व्यर्थ शिक्षक को,
सिर्फ अनासक्त भाव जगाया है
निर्माण और विध्वंस गोद में पलते हैं शिक्षक के,
चाणक्य ने यह बतलाया है
बंकिमचंद्र और अरविंदो की शिक्षा ने,
सफल बनाया स्वतंत्रता संग्राम
शिक्षकों का करके सम्मान,
बढ़ाएं अपना खुद का मान
विकृति आई वर्तमान समाज में,
भौतिकता का बड़ा प्रचार
शिक्षक भी है अंग समाज के ही,
उनमे भी कुछ का बदला व्यवहार
सुविधाएं उतनी हम दे नहीं पाए,
जितनी कि वे थे हकदार
कर्मी कल्चर चला बहुत दिनों,
अब आया थोड़ा सुधार
अभी भी 5000 में प्राइवेट शिक्षक,
पसीने की अपनी बहाते धार
नजर डालें हम धार्मिक और सामाजिक आयोजनों पर तो,
शिक्षक ही आगे बढ़कर उठाते भार
भविष्य रखेंगे उज्जवल शिक्षक ही,
क्योंकि अतीत रहा है शानदार
सदियों से फर्ज निभाते आए शिक्षक,
राष्ट्र निर्माण को दिया अंजाम
शिक्षकों का करके सम्मान,
बढ़ाएं अपना खुद का मान