विपत्ति में विरोध में अडिग रहो अटल रहो – Ramdhari Singh Dinkar
विपत्ति में, विरोध में
अडिग रहो, अटल रहो,
विषम समय के चक्र में भी
साहसी प्रबल रहो।
विपत्ति में, विरोध में
अडिग रहो, अटल रहो,
विषम समय के चक्र में भी
साहसी प्रबल रहो।
फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी,
महाशिवरात्री का महात्योहार
सृष्टि का आरम्भ अग्नि लिंग से,
जो महादेव का असीम आकार
हिन्दु महोदधि की छाती में
धधकी अपमानों की ज्वाला,
और आज आसेतु हिमाचल
मूर्तिमान हृदयों की माला।
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं
हारना तब आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई “अपनों” से हो।
और जीतना तक आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई अपने आप से हो।
बाड़ियाँ फटे हुए बाँसों पर फहरा रही हैं
और इतिहास के पन्नों पर
धर्म के लिए मरे हुए लोगों के नाम
बात सिर्फ़ इतनी है
साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं
‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।
म कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
देवता थे वे, हुए दर्शन, अलौकिक रूप था
देवता थे, मधुर सम्मोहन स्वरूप अनूप था
देवता थे, देखते ही बन गई थी भक्त मैं
हो गई उस रूपलीला पर अटल आसक्त मैं
मैं अकेला;
देखता हूँ, आ रही
मेरे दिवस की सान्ध्य बेला।