Dhumil Ki Kavita | सच्ची बात

Dhumil Ki Kavita | सच्ची बात

बाड़ियाँ फटे हुए बाँसों पर फहरा रही हैं
और इतिहास के पन्नों पर
धर्म के लिए मरे हुए लोगों के नाम
बात सिर्फ़ इतनी है
स्नानाघाट पर जाता हुआ रास्ता
देह की मण्डी से होकर गुज़रता है

और जहाँ घटित होने के लिए कुछ भी नहीं है
वहीं हम गवाह की तरह खड़े किये जाते हैं
कुछ देर अपनी ऊब में तटस्थ
और फिर चमत्कार की वापसी के बाद
भीड़ से वापस ले लिए जाते हैं

वक़्त और लोगों के बीच
सवाल शोर के नापने का नहीं है बल्कि
उस फ़ासले का है जो इस रफ़्तार में भी सुरक्षित है
वैसे हम समझते हैं कि सच्चाई हमें अक्सर
अपराध की सीमा पर छोड़ आती है

आदतों और विज्ञापनों से दबे हुए आदमी का
सबसे अमूल्य क्षण सन्देहों में तुलता है
हर ईमान का एक चोर दरवाज़ा होता है
जो सण्डास की बगल में खुलता है

दृष्टियों की धार में बहती नैतिकता का
कितना भद्धा मज़ाक है कि हमारे चेहरों पर
आँख के ठीक नीचे ही नाक है।

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