कवि भूषण शिवाजी कविता

कवि भूषण शिवाजी कविता

साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं 
‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।

भावार्थ:-  घोड़े पर सवार छत्रपति शिवा जी वीरता और कौशल से परिपूर्ण अपनी चतुरंगिणी सेना की अगुआई करते हुए जंग जीतने के लिए निकल पड़े हैं। बजते हुए नगाड़ों की आवाज़ और मतवाले हाथियों के मद से सभी नदी-नाले भर गए हैं।

ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,
गजन की ठैल पैल सैल उसलत हैं ।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं ।।

भावार्थ:- भीड़ के कोलाहल, चीख-पुकार के फैलने से रास्तों पर खलबली मच गयी है । मदमस्त हाथियों की चाल ऐसी है कि धक्का लगने से आस-पास के पहाड़ तक उखड़कर गिर जा रहे हैं। विशाल सेना के चलने से उड़ने वाली धूल के कारण सूरज भी एक टिमटिमाते हुए तारे सा दिखने लगा है। विशाल चतुरंगिणी सेना के चलने से संसार ऐसे डोल रहा है जैसे थाल में रखा हुआ पारा हिलता है।

ये सुने –
बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने राव राने देस देस के ।
नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,
बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥

भावार्थ:- शिवाजी की सेना के झंडों के फहराने से और हाथियों के गले में बंधे हुए घण्टों की आवाजों से देश-देश के राजा-महाराजा पल भर भी न ठहर सकें।  नगाड़ों की आवाज़ से पहाड़ तक हिल गए, गांवों और नगरों के लोग इधर-उधर भागने लगे।

हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।
दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,
केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥

भावार्थ:- शत्रु-सेना के हाथियों पर बंधे हुए हौदे घड़ों की तरह टूट गये। शत्रु-देशों की स्त्रियां, जब अपने-अपने घरों की ओर भागीं तो उनके केश हवा में इस तरह उड़ रहे थे, जैसे कि काले रंग के भौंरों के झुंड के झुंड उड़ रहे हों। शिवाजी की सेना के चलने की धमक से कछुए की मजबूत पीठ टूटने लगी है और शेषनाग का फन मानो केले के पत्तों की तरह फैल गया।

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।
पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
‘भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥

भावार्थ:- जिस प्रकार जंभासुर पर इंद्र, समुद्र पर बड़वानल, रावण के दंभ पर रघुकुल राज, बादलों पर पवन, रति के पति अर्थात कामदेव पर शंभु अर्थात भगवान शिव, सहस्त्रबाहु पर  परशुराम, पेड़ों के तनों पर दावानल, हिरणों के झुंड पर चीता, हाथी पर शेर, अंधेरे पर प्रकाश की एक किरण, कंस पर कृष्ण भारी हैं उसी प्रकार म्लेच्छ वंश पर शिवाजी शेर के समान हैं।

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कवि भूषण शिवाजी कविता

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