Holi Par Kavita – ऐसी हो अब की होली

Holi Par Kavita

Holi Par Kavita-
काश ऐसी हो अब की होली
कहीं न चले कोई चाकू गोली
प्रेम भरी हो सबकी बोली
नफरत मिटे, मिटे अबोली
हर घर बने शुभ रंगोली
सुदृढ़ हो अर्थव्यवस्था देश की,
फेलाना न पड़े कहीं झोली
कोई ना सोये खुले आसमान में
सभी को सुगम हो एक सुंदर खोली
अगले ओलंपिक हों देश में
हर खेल को मिले एक कोहली
पर्यावरण न बिगड़े फिजा का
चाहे हम ईद मनाएं या होली
काश ऐसी हो अब की होली,
कहीं न चले कोई चाकू गोली

त्योहारों का देश हमारा
होली हमारा बड़ा त्यौहार
बजट बिगड़ जाता त्योहारों में
पर बिना बजट का यह त्यौहार
रंगों का मात्र महत्व है
मुफ्त पलाश की बहती बयार
लाल, नीले, पीले सस्ते रंगों से
जैसा चाहे पायें निखार
भेदभाव की नहीं गुंजाइश
समानता का होता व्यवहार
पानी, मिट्टी और कीचड़ तक से
व्यक्तित्व निकलता शानदार
भव्यता में नहीं सभ्यता
अल्हड़ता का चढ़ता खुमार
हास्य व्यंग्य से नशा उन्माद तक
प्रचलन में है हंसी ठिठोली
काश ऐसी हो अब की होली,
कहीं न चले कोई चाकू गोली

इस रंगहीन दुनिया को रंगीन करने के
हम सबके हो प्रयास
बहुरंगी विविधता में इक रंगीयत का
उज्जवल हमारा है इतिहास
जाति, वर्ग, भाषा का भेद मिटायें
राष्ट्रीयता पर सिर्फ हो विश्वास
नशे, अपराध से मुक्त यह होली
उदाहरण बने दुनिया में खास
अधिकारों से पहले कर्तव्य भाव को
अर्पित करें हम अक्षत रोली
काश ऐसी हो अब की होली,
कहीं न चले कोई चाकू गोली

हर हिंदुस्तानी का इस होली
बस एक ही अरमान हो
दुनिया भर में भारत की
एक अलग पहचान हो
हर धर्म का बराबर यहां सम्मान हो
अब ना कोई दीवार हमारे दरम्यान हो
दिन में मनायें हम होली
तो रात को रमजान हो
कड़वाहटें वे बेरंग हो जाए
जो रंगीन जीवन में हमने घोली
काश ऐसी हो अब की होली,
कहीं न चले कोई चाकू गोली

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