क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की - कविता
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की – कविता

दुख सभी को होता है, किसी की निर्मम हत्या होने पर
दुख होता है, पवित्र धारणाओं के मिथ्या होने पर
दुख होता है, चोरी, डकैती, आतंकी घटनाओं पर
पर दुख ज्यादा होता है, पाशविक, क्रूर जघन्यताओं पर
दोषी को सजा भी मिलती है, पर सजा नही मिलती अपराध के तरीके अपनाने की
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की
गैंगरेप होते है प्रितिदिन, दोषियों पर होती सजा मुकर्रर
पर बच जाती पीड़िता यदि तो, दोषी भी बच जाते कानून को छूकर
सजा मिलती रेप की, हत्या की, पर अतिरिक नही मिलती सजा बर्बरता से पेश आने की
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की
हाल ही में घटनाये घटी अति दुखकर
दिल दहल गया अखबार में पढ़कर
पाँव काटे चांदी की खातिर, मर गई वृद्धा तड़प-तड़प कर
302 लगी दोषी पर, पर यह अपराध तो था हत्या से बढ़कर
मार कर निकालता चांदी या चांदी निकालने में मरी वो, दोनों में होना चाहिये था बड़ा अन्तर
इसी अन्तर पर होनी थी सजा, जरूरत नहीं यह बतलाने की
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की
विशाल कुऐं बनवाते गाँवों में, पर बनती नही एक छोटी सी मुंडेर
मूक जानवरों से इंसानों तक के गिरने की, देखते रहते हम अंधेर
गाय, भैंस और बच्चे बूढ़ों को, निकाल ही लेते हम देर सबेर
पर अनुपयोगी गिर जाये कोई बिल्ली कुत्ता, नही किसी के दिल में दुखता
न वह जीता न वह मरता, जान निकलने तक तड़पा करता, हमारी गलती है यह या नृशंस बर्बरता
क्यों नही सोचते हम कुएं बावड़ियों को सुरक्षित बनवाने की
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की
जानवरों को ट्रकों में रखकर, कुढ़े कर्कट सा ले जाते भरकर
गर्दन भी सीधी कर न पाये, बांधते उनको इतना सटकर
जितनी पीढ़ी से वे गुजरते, पीड़ा उतनी नही होती कटकर
बड़ा है यह पाप हत्या से, जरूरत है बड़ा अपराध इसे बनाने की
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की
यह पाप है प्रतीक मात्र, ऐसे करते हम पाप हजार
सांपो को पिटारे में रखकर, दुम फेलाना तक कर देते दुष्वार
फिर जबरदस्ती दूध पिलाकर, प्रकृति विरुद्ध करते व्यवहार
तोता मैना को पिंजरों में कैदकर, उड़ने का छीन लेते अधिकार
मछली, कछुओं को ऐक्वेरियम में रखकर, मूर्ख सजाते अपने घर द्वार
कहाँ तो पूरा जहान उनका था, और कहाँ हमने सिमट दिया संसार
संवेदन शून्य हो चुके है हम, बच्चों को भी दे रहे यही संस्कार
निर्दयता मिटे इस धरती से, सद्बुद्धि हमें दे परवरदिगार
माना कि कानून भावनाओं से परे है, तो जरूरत है नया कानून बनाने की
क्यों न सजा हो मारने से ज्यादा तड़पाने की

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *