पितृ पक्ष कविता
मुझे ना कर्मकांड याद है,
न धार्मिक विधि-विधान याद है
पितरों की पूजन का समय क्या,
नियम क्या, यह सब मुझे नहीं याद है
हर समय उचित पितृ पूजन का,
मेरी तो सब से यही फरियाद है
हमारी हर सफलता के पीछे,
वे ही आधार हैं, वे ही बुनियाद हैं
पितरों की पूजा और जीवितो की उपेक्षा,
मैं मानता यह बड़ा अपराध है
पितृपक्ष अशुभ मानने का,
मेरी नजर में हर तर्क विचित्र है
विस्मृत पित्रो का नमन पक्ष होने से,
मैं मानता हूं पितृ पक्ष पवित्र है।
पितृ ऋण, देव ऋण और गुरु ऋण का, हम पर माना जाता भार
बाकी ऋण उतरते एक ही दिन में,
पर पित्र ऋण के लिए 15 दिवसीय यह त्यौहार
तिल, जल और अन्य वस्तुओं का,
आत्माएं सूक्ष्म रूप में ग्रहण करती आहार
श्राद्ध सामग्री श्रद्धा से पहुंचाने,
कौवे कुत्तों और गायों को बनाते, हम आधार
यम के नजदीकी माने जाते कौवे, कुत्ते, तो गाये कराती वैतरणी पार
कुष और दूब का महत्व इन दिनों,
यानी पर्यावरण का भी रहा प्रचार
पशु, पक्षियों और पेड़ पौधों को,
हम मानते आए अपना मित्र हैं
इन संस्कारों को और बढ़ाने,
मैं मानता हूं पितृ पक्ष पवित्र है।
पितृ आते हैं मृत्युलोक में, बताते,
रामायण महाभारत और वेद पुराण
भाद्र पूर्णिमा से पित्र मोक्ष अमावस्या तक,
पिंडदान का हे विधान
दशरथ और जटायु को जल तर्पण कर,
राम ने उन्हें पहुंचाया अपने धाम
गयाजी सुप्रसिद्ध है तर्पण तीर्थ,
यहां स्वयं विराजित विष्णु भगवान
गया सुर का वध करके विष्णु जी ने,
मोक्ष धाम बनाया यह स्थान
पुण्य आत्माओं की नजदीकी से, इन दिनों,
हम अर्जित करते, उनके आशिशों का इत्र है
विस्मृत पित्रो का नमन पक्ष होने से,
मैं मानता हूं पितृ पक्ष पवित्र है।
श्राद्ध वह जो श्रद्धा से संपन्न हो,
प्रदर्शन से हो पूर्णतः दूर
परंपरा रही है ब्राह्मण भोजन की,
आप चाहे तो निभाएं जरूर
पर ब्राह्मण से पहले उन्हें भी देखें,
जो ज्यादा असहाय, निर्धन और मजबूर
आपकी सामर्थ्य, संपन्नता और श्रद्धा ठीक है,
पर हावी ना होने दें अपना गुरुर
सादगी पसंद हम सभी के पूर्वज,
आयोजन भी सादगी से हो भरपूर
परंपराएं बदलती है, बदलनी चाहिए,
उदार हमारा सनातन चरित्र है
विस्मृत पित्रो का नमन पक्ष होने से,
मैं मानता हूं पितृ पक्ष पवित्र है।
अंत में नमन पुनः पितरों को,
पर जीवितो को भी नहीं दिल से बिसराएं
मां-बाप मेरे साथ नहीं,
मैं उनके साथ हूँ, ऐसी बनाएं धारणाएं
डॉलर कमाना अच्छा है परदेश में,
पर ज्यादा अच्छा, मां-बाप संग रुपए कमाए
बहुत सौभाग्यशाली हैं वे,
जिन पर बुजुर्गों की है छत्रछायाऐ
कम भाग्यशाली नहीं वे भी,
जिनने कभी कमाई उनकी दुआएं
कमी एहसास होती है मृत्यु पर उनकी,
लगता है जैसे दुनिया ही रूठ जाए
बुजुर्गों की सेवा सिर्फ फर्ज नहीं,
इससे हम स्वयं ही सुकून शांति पाएं
पति, पत्नी और बच्चों मात्र तक ही,
सीमित ना करें परिवार की परिभाषाएं
मां बाप से दादा दादी, चाचा चाची,
ताऊ ताई तक सब विवाह से पहले आए
यह सब जीवित पित्र हैं,
इनको हमारी ज्यादा है आवश्यकताएं
इनको चाहिए प्रेम और समय आपका,
क्योंकि इनको आपकी ज्यादा फिक्र है
विस्मृत पित्रो का नमन पक्ष होने से,
मैं मानता हूं पितृ पक्ष पवित्र है।
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