भारतीयता को मिले विस्तार, कोरोना की होगी निश्चित हार – कविता

भारतीयता को मिले विस्तार, कोरोना की होगी निश्चित हार
कोरोना की होगी निश्चित हार

शुभ ही शुभ घटता प्रकृति में,
शुभ प्रकृति का, स्थायी व्यवहार।
शुभ के लिए ही जन्मते धर्म,
शुभ के लिए ही होते अवतार।
सनातन धर्म है शुभ सदा से,
विज्ञान को हमने माना आधार।
शुभ संस्कृति में रहा समाहित,
जिससे शुद्ध रहे आचार विचार।
शुभ, शुद्ध और संयम का संतुलन,
हर समस्या का है उपचार।
भारतीयता को मिले विस्तार,
कोरोना की होगी निश्चित हार।

सब कुछ पाया हमने विज्ञान से,
कल्पना की, थी, जहां तक उड़ान।
अत्याधिक विकसित है मानव आज,
मुट्ठी में है जमीन आसमान ।
चांद, मंगल और अंतरिक्ष की सैर से,
हम खुद को मान गए भगवान।
पर एक माइक्रोमीटर के इस सूक्ष्म वायरस से,
थम गया जैसे सारा जहान।
विज्ञान के वरदान को बनाके अभिशाप,
अपना ही हम कर रहे  संहार,
भारतीयता को मिले विस्तार,
कोरोना की होगी निश्चित हार।

जब भी हुई अप्राकृतिक मौतें,
मानव जनित ही रहे हैं कारण‌।
बाढ़, भूकंप और तूफानों का भी,
प्रकृति विरुद्ध हमारा आचरण।
परमाणु और जैविक हथियारों का, 
संग्रहण भी हमने किया अकारण।
चमगादड़ तक को भोजन बनाया, 
विषाणुओं का किया विस्तारण।
सारी दुनिया भुगत रही है ,
शायद चाइना ही है सूत्रधार।
भारतीयता को मिले विस्तार,
कोरोना की होगी निश्चित हार।

स्वच्छता, शुद्धता हो प्राथमिकता हमारी,
पवित्रता हमारे जीवन में आए।
बार-बार हाथ धोना हो सुनिश्चित,
हर व्यक्ति एक जनेऊ चढ़ाएं।
देख लिया हश्र हाथ मिलाने का,
राम-राम फिर प्रचलन में आए।
मांसाहार को दें तिलांजलि,
शाकाहार ही सिर्फ अपनाएं।
जैन मुनियों सा मास्क पहनकर,
विषाणुओं से अपने को बचाएं।
निरर्थक ना भटके भीड़ में,
स्वास्थ्य, स्वाध्याय में ध्यान लगाएं।
चतुर्मास व्यवस्था जो रही अतीत में,
श्रृंखला तोड़ने का है यही उपाय।
तुलसी, गिलोय, अदरक आदि से,
रोग प्रतिरोध की शक्ति बढ़ाएं‌।
सरकार प्रयासरत है कोरोना के नाश को,
सुझाव अनुरूप कदम उठाएं।
सनातन संस्कृति के पुनः स्थापन से,
सात्विक हो हमारे संस्कार।
भारतीयता को मिले विस्तार,
कोरोना की होगी निश्चित हार

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