Tulsidas ki Kavita- एक अकेले तुलसीदास| Tulsidas Poem in Hindi
ना कोई तुलना, ना कोई टक्कर,
उन पर निर्भर सारा इतिहास
कवि कहें, संत कहें या मसीहा समाज के,
सीमित करने का न करें प्रयास
सम्पूर्ण मानव थे इस धरा पर,
ना कोई तुलना, ना कोई टक्कर,
उन पर निर्भर सारा इतिहास
कवि कहें, संत कहें या मसीहा समाज के,
सीमित करने का न करें प्रयास
सम्पूर्ण मानव थे इस धरा पर,
अनन्त युगों से चल रही दुनिया,
अनन्त युगों तक चलना है
अनन्त जीवन पाना है,
अनन्त रूपो में ढलना है
अनन्त क्षितिज है, अनन्त सूर्य है,
अनन्त हमारी अभिलाषायें
अनन्त है विस्तार ब्रह्मांड का,
अनन्त हमारी दसों दिशायें
आओ अब वृक्ष लगाना बंद करें,
क्यों मृत्यु दर को मंद करें
भीड़ बढ़ रही कीट पतंगों सी,
क्यों स्वच्छ हवा का इन्हें प्रबंध करें
चिंता नहीं जब किसी को भविष्य की तो,
क्यो अक्ल के मन्दो को अक्लबंद करें
त्योहारों का देश हमारा,
एक दो दिवस के होते हर त्यौहार
पर नवरात्रि चलती नौ दिनों तक,
वर्ष में मनाते हम दो-दो बार
सतयुग में स्वर्ग लोक बनाया,
त्रेता में किया लंका निर्माण
द्वापर में द्वारिका तो
कलयुग में इंद्रप्रस्थ को दिया अंजाम
पुरी में भी बनाया मंदिर,
जिसमें विराजित कृष्ण, सुभद्रा और बलराम
संस्कृत जननी है विश्व भाषाओं की,
मानता है सारा संसार
हमारी क्षेत्रीय भाषाओं का भी,
संस्कृत ही है मूल आधार
देववाणी रही संस्कृत
कंकर-कंकर, शंकर जहां पर,
कण-कण में है भगवान,
है राम से राम-राम तक,
श्वाश-श्वाश में बसते राम
राम इस देश के है,
ये देश राम का है
राममय है जीवन हमारा,
यह सामाजिक परिवेश राम का है
दिन की शुरुआत राम-राम से,
जीवन का अंत राम-नाम से
जो कुछ भी हम बन पाये अब तक,
यह अनुग्रह सर्वेश राम का है
सतयुग, द्वापर, त्रेता बीता,
चल रहा है कलयुग का काल
शुरुआत ही है कलिकाल की,
चलना और हजारों साल
घर-घर कंश है दर-दर दुर्योधन,
एक नही पर गिरधर गोपाल
शिक्षकों पर निर्भर है दुनिया,
शिक्षक बढ़ाते देश का मान
भौतिकता पर नैतिकता का अंकुश,
शिक्षक ही रखते महावत समान
पादरी चलाते देश कहीं तो,
कहीं मूल्ला रखते हाथ में कमान
जैसी जिसकी शिक्षा वेसा,
देश उनका उतना बनता महान