क्षत्रिय – मैथिलीशरण गुप्त
हे क्षत्रियो! सोचो तनिक, तुम आज कैसे हो रहे;
हम क्या कहें, कह दो तुम्हीं, तुम आज जैसे हो रहे।
स्वाधीनता सारी तुम्हीं ने है न खोई देश की?
बन कर विलासी, विग्रही नैया डुबोई देश की॥
निज दुर्दशा पर आज भी क्यों ध्यान तुम देते नहीं?
अत्यन्त ऊँचे से गिरे हा! किन्तु तुम चेते नहीं!
अब भी न आँखें खोल कर क्या तुम बिलोकोगे कहो?
अब भी कुपथ की ओर से मन को न रोकोगे कहो?
वीरो! उठो, अब तो कुयश की कालिमा को मेट दो,
निज देश को जीवन सहित तन, मन तथा धन भेट दो।
रघु, राम, भीष्म तथा युधिष्ठिर-सम न हो जो ओज से-
तो वीर विक्रम-से बनो, विद्यानुरागी भोज-से॥