क्षत्रिय – मैथिलीशरण गुप्त
हे क्षत्रियो! सोचो तनिक, तुम आज कैसे हो रहे;
हम क्या कहें, कह दो तुम्हीं, तुम आज जैसे हो रहे।
स्वाधीनता सारी तुम्हीं ने है न खोई देश की?
बन कर विलासी, विग्रही नैया डुबोई देश की॥
निज दुर्दशा पर आज भी क्यों ध्यान तुम देते नहीं?
अत्यन्त ऊँचे से गिरे हा! किन्तु तुम चेते नहीं!
अब भी न आँखें खोल कर क्या तुम बिलोकोगे कहो?
अब भी कुपथ की ओर से मन को न रोकोगे कहो?
वीरो! उठो, अब तो कुयश की कालिमा को मेट दो,
निज देश को जीवन सहित तन, मन तथा धन भेट दो।
रघु, राम, भीष्म तथा युधिष्ठिर-सम न हो जो ओज से-
तो वीर विक्रम-से बनो, विद्यानुरागी भोज-से॥
Pingback: ब्राह्मण - मैथिलीशरण गुप्त | हे ब्राह्मणों फिर पूर्वजों के तुल्य तुम
मैंने मैथिलीशरण गुप्त की कुछ रचनाएं पढ़ीं। बचपन में पढ़ी कुछ कविताएं भी उनमें थीं।उनकी कविता नर हो ना निराश करो मन को
आज भी निराश मन को प्रेरणा देती हैं। यशोधरा द्वारा शिशु राहुल को सम्बोधित कविताएं पुरानी यादों को ताजा कर गई।
मैं एक कविता ढूंढ रहा था जो राव रणमल्ल से सम्बंधित है। उनके सैनिक विजय के जोश में किसी पुराने स्मारक को तोड़ने जा रहे थे तो उन्हें उन्होंने रोका था। संभवत वह कविता मैथिली शरण गुप्त की थी। अन्य किसी की भी हो सकती है। यदि पता लगे कि कृपया बताएं। आपका अनुग्रहीत रहूंगा।
राव रणमल से सम्बंधित कविता खोजने का काफी प्रयास किया पर कोई भी कविता नहीं मिली। अगर आपको कुछ पंक्तियाँ ज्ञात हो तो साझा कीजिये मै उसके द्वारा खोजने का प्रयास करूँगा।
Pingback: हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी | मैथिलीशरण गुप्त