Maa Par Kavita – मां की यही कहानी थी
Maa Par Kavita
घुटनो से रेंगते रेंगते
कब पैरो पर खड़ा हुआ
तेरी ममता की छाव में
ना जाने कब बड़ा हुआ
काला टीका दूध-मलाई
आज भी सब कुछ वैसा हैं
एक मैं ही हूं हर जगह
प्यार ये तेरा कैसा हैं?
सीदा-सादा, भोला-भाला
मैं ही सबसे अच्छा हूं
कितना भी हो जाऊं बड़ा मां
मैं आज भी तेरा बच्चा हूं
कैसा था नन्हा बचपन वो
मां की गोद सुहाती थी,
देख-देख कर बच्चों को वो
फूली नहीं समाती थी।
जरा सी ठोकर लग जाती तो
मां दौड़ी हुई आती थी ,
जख्मों पर जब दवा लगाती
आंसू अपने छुपाती थी।
जब भी कोई जिद करते तो
प्यार से वो समझाती थी,
जब-जब बच्चे रूठे उससे
मां उन्हें मनाती थी।
खेल खेलते जब भी कोई
वो भी बच्चा बन जाती थी,
सवाल अगर कोई न आता
टीचर बन के पढ़ाती थी।
सबसे आगे रहें हमेशा
आस सदा ही लगाती थी ,
तारीफ अगर कोई भी करता
गर्व से वो इतराती थी।
होते अगर जरा उदास हम
दोस्त तुरन्त बन जाती थी,
हंसते रोते बीता बचपन
मां ही तो बस साथी थी।
मां के मन को समझ न पाये
हम बच्चों की नादानी थी,
जीती थी बच्चों की खातिर
मां की यही कहानी थी।
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