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परिवर्तन पर कविता: बदलाव करो निरंतर करो
बदलाव करो, निरंतर करो
पर उसमें कुछ बेहतर करो
बदलाव हो जो जीवन सरल करे
जड़ता को विरल करे
बदलाव अज्ञानता से ज्ञान का
मूढ़ता से विद्यावान का
भारत देश पर कविता | ये देश बनता है – सविता पाटिल
ये देश नही बनता केवल खेत-खलिहानों से
पहाड़ो से या मैदानों से
पठारों या रेगिस्तानों से
ये देश बनता है….
यहाँ बसते इंसानों से।
बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँ
मैं, मैं हूँ
और सदा मैं ही रहूँ !
मैं क्यों खुद को बदलूँ ?
मेरी सोच मेरी है
जानता हूँ, ये खरी है !
किसान पर कविता – कभी न करना अन्न दाता का अपमान
अन्न के कण-कण में होते है भगवान
कभी न करना अन्न दाता का अपमान
अन्न से ही जीवन की गति है चलती
शरीर को ताकत और ऊर्जा भी मिलती
Chhoti si Kavita: हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है
हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है
मौन-सी लहरों में कुछ रहस्य जड़ा है
आसपास घूमते चेहरों में
एक किस्सा, अपनी एक दास्तां है
सभी एक सफर है
है कुछ न कुछ जो सभी ने सहा है
हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है।
तुझे जीना होगा – सविता पाटिल | हिंदी कविता
इन लम्हों को बीतने दे
जो प्रलय उठा है जीवन में उसे थमने दे
यहाँ कुछ भी तो शाश्वत नहीं
फिर किस बात से तू आश्वत नहीं