Ramdhari Singh Dinkar Poems

Ramdhari Singh Dinkar Poems

एक हाथ में कमल, एक में धर्मदीप्त विज्ञान,
ले कर उठनेवाला है धरती पर हिन्दुस्तान।

×××××

वीर को नहीं विजय का गर्व,
वीर को नहीं हार का खेद।

×××××

सामने देश माता का भव्य चरण है
जिह्वा पर जलता हुआ एक बस प्रण है
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे
पीछे परन्तु सीमा से नहीं हटेंगे
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट चढ़ेगी
लाशों पर चढ़ कर आगे फौज बढ़ेगी।

×××××

डगमगा रहें हों पाँव, लोग जब हँसते हों,
मत चिढ़ो, ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर।

×××××

हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं,
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।

×××××

स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
हम उन वीरों की सन्तान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान

×××××

रहा क्या पुण्य अब भी तोलने को ?
उठा मस्तक, गरज कर बोलने को ?

×××××

पंडित मदन मोहन मालवीय जी पर कविता – कविता दुनिया
वृथा है पूछना, था दोष किसका?
खुला पहले गरल का कोष किसका?
जहर अब तो सभी का खुल रहा है,
हलाहल से हलाहल धुल रहा है।

×××××

है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पांव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।

×××××

Ramdhari Singh Dinkar Poems

‘सबसे बड़ा विश्वविद्यालय अनुभव है
पर इसको देनी पड़ती है फीस बड़ी’

×××××

अनुकूल ज्योति की घड़ी न मेरी होगी,
मैं आऊँगा जब रात अन्धेरी होगी।

×××××

हिन्दुत्व को लीलने के लिए अंग्रेजी भाषा,
ईसाई मत और यूरोपीय बुद्धिवाद के रूप में
जो तूफान उठा था, वह स्वामी विवेकानंद के
हिमालय जैसे विशाल वक्ष से टकराकर लौट गया।

×××××

Ramdhari Singh Dinkar Poems

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

×××××

‘वचन माँग कर नहीं माँगना दान बड़ा अद्भुत है,
कौन वस्तु है, जिसे न दे सकता राधा का सुत है?
विप्रदेव! मॅंगाइयै छोड़ संकोच वस्तु मनचाही,
मरूं अयश कि मृत्यु, करूँ यदि एक बार भी ‘नाहीं’

×××××

ऊंच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है ,
दया धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।

×××××

दान जगत का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है,
एक रोज तो हमें स्वयं सब-कुछ देना पड़ता है।

×××××

मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं !

×××××

यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?
दस-बीस वधिक हों तो हम नाम गिनायें।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।
घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है।

×××××

रेशमी कलम से भाग्य-लेख लिखनेवालों,
तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोये हो?
बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में,
तुम भी क्या घर भर पेट बांधकर सोये हो?

×××××

और अधिक ले जांच, देवता इतना क्रूर नहीं है,
थक कर बैठ गए क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है।

×××××

जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर,
जो उससे डरते हैं
वह उनका, जो चरण रोप
निर्भय हो कर लड़ते हैं ।

×××××

लड़ना भर मेरा काम रहा,
दुर्योधन का संग्राम रहा।

×××××

Ramdhari Singh Dinkar Poems

आदमी अत्यधिक सुखों के लोभ से ग्रस्त है
यही लोभ उसे मारेगा,
मनुष्य और किसी से नहीं
अपने आविष्कार से हारेगा।

×××××

आओ सूरज को दिया दिखाएं – कविता दुनिया | Poem on Swami Vivekananda in Hindi
रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर!
पर, फिरा हमें गाण्डीव–गदा,
लौटा दे अर्जुन–भीम वीर।

×××××

नित जीवन के संघर्षो से,
जब टूट चुका हो अन्तर्मन।
तब सुख के मिले समंदर का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

×××××

उठ मंदिर के दरवाजे से,
जोर लगा खेती में अपने
नेता नहीं, भुजा करती है
सत्य सदा जीवन के सपने

×××××

श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र,
भूखे बालक अकुलाते हैं,
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर
जाड़ों की रात बिताते है।

×××××

जो भी पुरुष निष्पाप है,
निष्कलंक है, निडर है
उसे प्रणाम करो,
क्योंकि वह छोटा–मोटा ईश्वर है।

×××××

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।

×××××

स्वच्छ भारत अभियान पर कविता – स्वच्छ भारत अभियान | Poem on Swatch Bharat
दो में से क्या तुम्हे चाहिए
कलम या कि तलवार,
मन में ऊँचे भाव कि तन में
शक्ति विजय अपार!
अंध कक्ष में बैठ रचोगे
ऊँचे मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे
बाहर का मैदान!

×××××

गरज कर बता सब को, मारे किसी के
मरेगा नहीं हिन्द–देश,
लहू की नदी तैर कर आ गया है
कहीं से कहीं हिन्द–देश।

×××××

Ramdhari Singh Dinkar Poems

हो जिसे धर्म से प्रेम, कभी
वह कुत्सित कर्म करेगा क्या?
बर्बर, कराल, दंष्ट्री बनकर
मारेगा और मरेगा क्या?

×××××

जनमा लेकर अभिशाप, हुआ वरदानी
आया बनकर कंगाल, कहाया दानी।
दे दिये मोल, जो भी जीवन ने माँगे
सिर नहीं झुकाया कभी किसी के आगे।

×××××

आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में !

×××××

शिवाजी महाराज कविता हिंदी – रोहित सुलतानतुरी | Poem in Hindi
तुम जिसे मानते आये हो,
उद्देश्य सभी से अच्छा है,
जनमे हो जहाँ, जगत् भर में
वह देश सभी से अच्छा है।

×××××

सिर की कीमत का भान हुआ,
तब त्याग कहाँ? बलिदान कहाँ?
गरदन इज्जत पर दिये फिरो,
तब मजा यहाँ जीने का है।

×××××

मुसीबत को नहीं जो झेल सकता,
निराशा से नहीं जो खेल सकता,
पुरुष क्या, श्रृंखला को तोड़ करके
चले आगे नहीं जो जोर करके?

×××××

Ramdhari Singh Dinkar Poems

One Comment

  1. दिनकरजी की आज के लिए अतिप्रासंगिक कविता प्रस्तुति के लिए अशेष शुभकामनाएं l इसी कड़ी में निवेदन करता चलूं कि उनका निबंध संग्रह ———
    " अर्धनारीश्वर " का अवश्य अवलोकन करें तथा इकबाल व पाकिस्तान पर लिखित सामग्री को पटल पर pdf form में रखें ताकि कांग्रेस की तत्कालीन साहित्यिक राष्ट्रधर्म विचारधारा लोगों तक पहुंचे और आज के राष्ट्रवादी लेखकों, चिंतकों को बल प्राप्त हो सके, साधुत: ल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *