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संघर्ष और सफलता कविता – मंजिलों की क्या हैसीयत
कश्तियां कहाँ मना करती है
तूफानों से टकराने को
वो मांझी ही डर जाता है
अपने आप को आजमाने को
भारत देश पर कविता | ये देश बनता है – सविता पाटिल
ये देश नही बनता केवल खेत-खलिहानों से
पहाड़ो से या मैदानों से
पठारों या रेगिस्तानों से
ये देश बनता है….
यहाँ बसते इंसानों से।
Chhoti si Kavita: हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है
हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है
मौन-सी लहरों में कुछ रहस्य जड़ा है
आसपास घूमते चेहरों में
एक किस्सा, अपनी एक दास्तां है
सभी एक सफर है
है कुछ न कुछ जो सभी ने सहा है
हर समंदर यहाँ सैलाब लिए खड़ा है।
बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँ
मैं, मैं हूँ
और सदा मैं ही रहूँ !
मैं क्यों खुद को बदलूँ ?
मेरी सोच मेरी है
जानता हूँ, ये खरी है !
किसानों पर दर्द भरी कविता| मैथिलीशरण गुप्त की कविता – किसान
हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है
हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ
परिवर्तन पर कविता: बदलाव करो निरंतर करो
बदलाव करो, निरंतर करो
पर उसमें कुछ बेहतर करो
बदलाव हो जो जीवन सरल करे
जड़ता को विरल करे
बदलाव अज्ञानता से ज्ञान का
मूढ़ता से विद्यावान का