किसान पर कविता

किसान पर कविता – सविता पाटिल

अन्न के कण-कण में होते है भगवान
कभी न करना अन्न दाता का अपमान
अन्न से ही जीवन की गति है चलती
शरीर को ताकत और ऊर्जा भी मिलती
किसान हर दिन रात मेहनत है करता
गर्मी की धूप तो जाड़े की सर्दी भी सहता
इतना आसान नही फसलों को उगाना
किसान की मेहनत सबने कहाँ माना
कुछ लोग अन्न का रखते नही मान है
हर रोज फेंक कर करते अपमान है
जिन्हें बिन मेहनत के अन्न नसीब होता
वो अन्न की कीमत कभी नहीं समझता
अन्न का अनादर करने से पहले सोचना
इसका परिणाम भविष्य में है भोगना
कितने गरीब है दर-दर भटकते
पेट भर खाने तक को हैं तरसते
ज्यादा हो अन्न तो गरीबों को करो दान
पूण्य मिलेगा तुम्हे प्रसन्न होंगे भगवान
किसान पर कविता

Similar Posts